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अर्थ : हे भव्यजनों ! इसी ढाई द्वीप में भरत, ऐरावत, और महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न सर्व तीर्थङ्करों के जन्म के समय अपना आसन कम्पित होने के कारण सौधर्मेन्द ने अवधिज्ञान से (तीर्थङ्कर का जन्म हुआ ) जानकर, सुघोषा घण्टा बजवाकर (सूचना देते हैं, फिर) सुरेन्द्रों और असुरेन्द्रों के साथ आकर, विनय-पूर्वक श्री अरिहन्त भगवंत को हाथ में ग्रहण कर, मेरुपर्वत के शिखर पर जाकर, जन्माभिषेक करने के पश्चात् जैसे शान्ति की उद्घोषणा करते हैं, वैसे ही मैं (भी) किये हुए का अनुकरण करना चाहिये, ऐसा मानकर 'महाजन जिस मार्ग से जाएँ, वही मार्ग,' ऐसा मानकर भव्यजनों के साथ आकर, स्नात्र पीठ पर स्नात्र करकें, शान्ति की उद्घोषणा करता हूँ, अतः आप सब पूजा-महोत्सव, (रथ) यात्रा-महोत्सव, स्नात्र-महोत्सव आदि की पूर्णाहुति करके कान देकर सुनिये ! सुनिये ! स्वाहा । २. ॐ पुण्याहं पुण्याहं ओम् पुण्या-हम् पुण्या-हम्
| ॐ आज का दिन पवित्र है-पवित्र हैप्रीयन्तां प्रीयन्तां, प्री-यन्-ताम् प्री-यन्-ताम्,
प्रसन्न हों - प्रसन्न होंभगवन्तोऽर्हन्त:भग-वन्-तोर-हन्-त:
अरिहंत भगवंतसर्वज्ञः सर्वदर्शिनसर-व-ज्ञः सर्-व-दर्-शि-न
सर्व पदार्थ के ज्ञाता (= सर्वज्ञ), सर्वदर्शी, स्त्रिलोक नाथास्त्रि-लोक-नाथा
तीन लोक के नाथ, स्त्रिलोकमहितास्त्रि-लोक-हि-ता
तीन लोक से पूजित, त्रिलोक-पूज्यास्त्रिलोकेश्वरा- स्त्रि-लोक-पूज-या-स्त्रि-लोकेश्-वरा- तीन लोक के पूज्य, तीन लोक के इश्वर, स्त्रिलोकोद्योतकराः ॥३॥ स्त्रि-लोको-धो (द्यो)-त-कराः ॥३॥ तीन लोक में उद्योत करनेवाले । ३. अर्थ : ॐ पद से शोभित आज का दिन पवित्र है-पवित्र है, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, तीन लोक के नाथ; तीन लोक से पूजित, तीन लोक के पूज्य, तीन लोक के ईश्वर, तीन लोक में उद्योत करने वाले, ऐसे ऐश्वर्यादि युक्त श्री अरिहन्त भगवन्त प्रसन्न हों, प्रसन्न हों । ३. ॐ ऋषभ-अजितओम् ऋ-षभ-अ-जित
ॐ पद से शोभित, ऐसे श्री ऋषभदेव, अजितनाथ, सम्भव-अभिनन्दनसम्-भव-अभि-नन्-दन
संभवनाथ, अभिनन्दन स्वामी, सुमति-पद्मप्रभसु-मति-पद्-म्-प्रभ
सुमतिनाथ, पद्मप्रभ स्वामी, सुपार्श्व-चन्द्रप्रभ-सुविधि
सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ स्वामी, सुविधिनाथ, शीतल-श्रेयांस-वासुपूज्य- शीत-ल-श्रे-यान्-स-वासु-पूज्-य- शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ, वासुपूज्यस्वामी, विमल-अनन्त-धर्म-शान्ति- विमल-अनन्-त-धर्-म-शान्-ति- विमलनाथ, अनंतनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुन्थु-अर-मल्लि-मुनिसुव्रत- कुन्-थु-अर-मल्-लि-मुनि-सु-व्रत- कुन्थुनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रतस्वामी, नमि-नेमि-पार्श्वनमि-नेमि-पार-श्व
नमिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, वर्द्धमानान्ता जिना:- वर्द्-ध-मानान्-ता जिना:
महावीर स्वामी पर्यंत (चोबीस) तीर्थंकर शान्ताः शान्तिकराशान्-ताः शान्-ति-करा
उपशम पाए हुए, क्रोध आदि कषाय के उपद्रवों को भवन्तु स्वाहा ॥४॥ भवन्-तु स्वाहा ॥४॥
शान्त करनेवाले बनें । स्वाहा । ४. अर्थ : ॐ पद से शोभित, ऐसे श्री ऋषभदेव, अजितनाथ, सम्भवनाथ, अभिनन्दनस्वामी, सुमतिनाथ, पद्मप्रभस्वामी, सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभस्वामी, सुविधिनाथ, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ, वासुपूज्यस्वामी, विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कन्थनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, मनिसव्रतस्वामी, नमिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और वर्धमानस्वामी पर्यंत, ऐसे चौबीस तीर्थकर उपशम पाए हुए, हमारे भी क्रोध आदि कषाय के उपद्रवों को शान्त करनेवाले बनें । स्वाहा । ४. ॐ मुनयो मुनिप्रवरा- ओम् मुन-यो मुनि-प्रवरा
ॐ पद द्वारा नमस्कार करके,
ऐसे हे मुनियों, मुनियों में श्रेष्ठ रिपुविजय-दुर्भिक्ष- रिपु-वि-जय-दुर्-भिक्-ष
शत्रुओं के विजय संबन्धी, दुष्ट काल में, कान्तारेषु-दुर्गमार्गेषु- कान्-ता-रेषु-दुर्-ग-मार्-गेषु- गहन अटवी में, विकट मार्ग के उल्लंघन संबन्धीरक्षन्तु वो-नित्यं स्वाहा ॥५॥ रक्-षन्-तु वो-नित्-यम्-स्वा-हा ॥५॥ रक्षण करें, तुम्हारा-हमेंशा (नित्य) स्वाहा ।५ अर्थ : ॐ शत्रुओं के विजय-प्रसङ्ग में, दुष्काल में ( प्राण धारण करने के प्रसङ्ग में ), गहन-अटवी में (प्रवास करने के प्रसङ्ग
में ) तथा विकट मार्ग का उल्लङ्घन करते समय, मुनियो में श्रेष्ठ ऐसे मुनि ! तुम्हारा नित्य रक्षण करें। स्वाहा । ५. २६८
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