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५५. श्री संतिकरं स्तोत्र
आदान नाम : श्री संतिकरं स्तोत्र
विषय: गौण नाम : श्री शांतिनाथ स्तवन शासन रक्षक देवगाथा : १४
देवियों के स्मरण के पद : ५६
साथ श्री शांतिनाथजी प्रतिक्रमण के समय अपवादिक मुद्रा ।
संपदा : ५६ बोलने की मुद्रा।
की भाववाही स्तवना। छंद :- गाहा; रागः जिणजम्मसमये मेरु सिहारे.... (स्नात्र पूजा) मूल सूत्र उच्चारण में सहायक
पदक्रमानुसारी अर्थ संतिकरं संतिजिणं,
सन्-ति करम् सन्-ति-जिणम्, शान्ति करनेवाले, श्री शान्तिनाथजी का, जगसरणं जय-सिरीइ दायारं। जग-सरणम् -जय-सिरीइ-दाया-रम्।। जगत के शरण रुप, जय और श्री दातार, समरामि भत्त-पालगसमरा-मि भत्-त-पालग
स्मरण करता हूँ। भक्तजनों के पालनहार, निव्वाणी-गरुड-कय-सेवं ॥१॥ निव्-वाणी-गरुड-कय-सेवम् ॥१॥ निर्वाणी देवी और गरुड़ यक्ष द्वारा सेवित ।१ अर्थ : जो शान्ति करनेवाले हैं, जगत के जीवों के लिये शरण-रूप हैं, जय और श्री देनेवाले हैं तथा भक्तजनों का पालन करनेवाले, निर्वाणी-देवी और गरुड़-यक्ष द्वारा सेवित हैं, ऐसे श्री शान्तिनाथ भगवंत का मैं स्मरण करता हूँ, ध्यान करता हूँ। १. ॐ स नमो विप्पोसहि- ॐ स-नमो विप्-पो-सहि
ॐ कार सहित नमस्कार, विपुडौषधि लब्धि कोपत्ताणं संतिसामि-पायाणं। पत्-ताणम् सन्-ति-सामि-पाया-णम् । प्राप्त करनेवाले, श्री शान्तिनाथ जी पूज्य को, झाँ स्वाहा मंतेणं,
झ्-रौम्-स्वाहा-मन्-तेणम्, झौं स्वाहा मन्त्र द्वारासव्वासिव-दुरिय-हरणाणं ॥२॥ सव्-वा-सिव-दुरिय-हरणा-णम् ॥२॥ सभी उपद्रव और पाप को हरण करनेवाले । २. ॐ संति-नमुक्कारो, ॐ सन्-ति-नमु-क्-कारो, ॐ कार सहित श्री शान्तिनाथ को
किया हुआ नमस्कार, खेलोसहि-माइ-लद्धि पत्ताणं । खेलो-सहि-माइ-लद्-धि-पत्-ता-णम् । श्लेष्मौषधि आदि लब्धि प्राप्त करनेवाले को, सौ ह्रीं नमो सव्वोसहि- सौम्-ह-रीम् नमो सव्-वो-सहि- सौं ह्रीं नमः' सर्वौषधि लब्धिपत्ताणं च देइ सिरिं॥३॥ पत्-ताणम् च देइ सिरिम् ॥३॥ प्राप्त करनेवाले और देते है, द्रव्य और भाव लक्ष्मी ।३. अर्थ : विप्रुडौषधि, श्लेष्मौषधि, सर्वौषधि आदि लब्धियाँ प्राप्त करनेवाले, सर्व उपद्रव और पाप का हरण करनेवाले, ऐसे श्री शान्तिनाथ भगवंत को 'ॐ नमः', झौं स्वाहा' तथा 'सौं ह्रीं नमः' ऐसे मन्त्राक्षर-पूर्वक नमस्कार हो; ऐसा श्री शान्तिनाथ भगवंत को किया हुआ नमस्कार जय और श्री को देता हैं। २-३.
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