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उसके बाद दाहिनी हथेली को चरवला/कटासणा पर उल्टा रखकर तथा बाई हथेली में मुंहपत्ति मुख के पास रखकर 'श्री अड्डाइज्जेसु सूत्र' श्रेष्ठ जन भावपूर्वक बोलें। (१४) श्री सीमंधरस्वामी के दोहे तथा चैत्यवंदन विधि
अनंत चउवीशी जिन नमुं, सिद्ध अनंत क्रोड। केवलधर मुगते गया, वंदु बे कर जोड ॥१॥
बे कोडी केवलधरा, विहरमान जिन वीश। सहस कोडी युगल नमुं, साधु नमुं निशदिश ॥२॥
जे चारित्रे निर्मळा, जे पंचानन सिंह। विषय कषायने गंजीया, ते प्रणमं निशदिश ॥३॥
उपरोक्त दोहे (ईशान कोने की ओर मुख कर अथवा ईशान कोने की ओर मुख है, इसकी कल्पना कर) में से एक दोहा योगमुद्रा में खड़े-खड़े बोलकर एक खमासमण दें । उसी प्रकार क्रमशः तीन दोहे बोलकर तीन खमासमण दें । (विषम संख्या में अलग-अलग अधिक खमासमण श्री सीमंधरस्वामीजी के दोहे बोलकर दिया जा सकता है।
उसके बाद एक खमासमण देकर आदेश मांगें - 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! श्री सीमंधरस्वामी जिन आराधनार्थं चैत्यवंदन करूं?' गुरुभगवंत कहें करेह' तब 'इच्छं' बोलें।
उसके बाद नीचे चैत्यवंदन मुद्रा में बैठकर योगमुद्रा के अनुसार दोनों हाथ जोड़कर मात्र श्री सीमंधरस्वामीजी का भाववाही चैत्यवंदन बोलें । उसके बाद 'जं किंचि नाम तित्थं', 'नमत्थणं', 'जावंति चेड्याई', एक 'खमासमण', 'जावंत केवि साहू', 'नमोऽर्हत्' क्रमशः बोलकर श्री सीमंधरस्वामीजी का भाववाही स्तवन बोले । ( अन्य किसी परमात्मा का स्तवन नहीं बोलना चाहिए ।) उसके बाद श्री जय वीयराय सूत्र' बोलकर खड़े होकर योगमुद्रा में 'अरिहंत चेइआणं...अन्नत्थं' सूत्र बोलकर एक बार श्री नवकार मंत्र का काउस्सग्ग कर, पारकर 'नमोऽर्हत्' बोलकर श्री सीमंधरस्वामीजी की थोय बोले। (१५) श्री सिद्धाचलजी के दोहे तथा चैत्यवंदन विधि
___ एकेकुं डगलुं भरे, शेजूंजा समु जेह। ऋषभ कहे भवक्रोडना, क्रर्म खपावे तेह... ॥१॥ शत्रुजय समो तीर्थ नहि, ऋषभ समो नहि देव । गौतम सरीखा गुरु नहि, वळी वळी वंदु तेह...॥२॥ सिद्धाचल समरूं सदा, सोरठ देश मोझार।। मनुष्य जन्म पामी करी, वंदु वार हजार ॥३॥
श्री सिद्धाचल गिरिराज की दिशा में मुँह रखकर एक-एक दोहा भावपूर्वक बोलें साथ ही एक-एक खमासमण दें । (यहाँ भी विषम संख्या में दोहे तथा खमासमण दिया जा सकता है।) ___उसके बाद एक खमासमण देकर खड़े-खड़े योगमुद्रा में आदेश मांगे - 'इच्छाकारेण भगवन् श्री सिद्धाचल महातीर्थ आराधनार्थं चैत्यवंदन करूँ ?' गुरुभगवंत कहे 'करेह' तब ‘इच्छं' बोलकर श्री सिद्धाचलजी की महिमा का वर्णन करते हुए चैत्यवंदन बोले । उसके बाद 'जंकिंचि नाम तित्थं'-'नमुत्थुणं''जावंति चेइआई' एक-खमासमण-'जावतं के वि साहू बोली 'नमोऽर्हत्' कहकर 'श्री शत्रुजय गिरिराज की महिमा का वर्णन करते हुए भाववाही स्तवन (श्री ऋषभदेव भगवान का ही स्तवन नहीं ) बोलें। ____ उसके बाद पूर्ण जय वीयराय सूत्र बोलकर खड़ेखड़े योगमुद्रा में अरिहंत चेइआणं...''अन्नत्थ' बोलकर एक बार श्री नवकार महामंत्र का कायोत्सर्ग कर, विधिपूर्वक पारकर नमोऽर्हत्' बोलकर श्री सिद्धाचलजी की थोय बोलनी चाहिए।
(१६)क्षमा-याचना उसके बाद सत्रह संडासा पूर्वक खमासमणा देकर पैरों के पंजे के बल पर नीचे बैठकर दाहिनी हथेली की मुट्ठी बांधकर चरवला/कटासणा पर रखकर तथा बाई हथेली में मुंहपत्ति मुख के आगे रखकर निम्नलिखित प्रकार से क्षमा याचना करें । 'राइअ-प्रतिक्रमण करते हुए यदि कोई अविधि -आशातना हुई हो, तो उस सबके लिए मन-वचन-काया से मिच्छा मि दुक्कडं'। (राइअ-प्रतिक्रमण रात्रि के समय सूर्योदय से पहले होने के कारण अतिशय मंद स्वर में मात्र साथ करने वाले भाग्यशाली ही सुन सकें, इस प्रकार बोलना चाहिए।)
(१७) सामायिक पारना आगे बतलाई गई विधि के अनुसार सामायिक पारे यहा 'चउक्कसाय' चैत्यवंदन की आवश्यकता नहीं है।
-: इति श्री राइअ-प्रतिक्रमण विधि समाप्त :
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