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________________ श्री राइअ-प्रतिक्रमण विधि (१)सामायिक | भाव के साथ 'इच्छकार सुहराइ' सूत्र बोलकर आदेश मांगें विधिपूर्वक सामायिक लेना। 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! राइअ पडिक्कमणे-ठाउं ?' (२) कुस्वप्न-दुःस्वप्न के निमित्त कायोत्सर्ग गुरुभगवंत कहें - 'ठावेह' तब ‘इच्छं' बोलकर नीचे पैरों के उसके बाद खमासमण देकर खड़े होकर योगमुद्रा में पंजे के सहारे घुटने के आधार पर बैठे । दाहिने हाथ की मुट्ठी आदेश मांगे - ‘इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! कुसुमिण- बांधकर चरवला/कटासणा पर स्थापित कर तथा बाएं हाथ दुसुमिण उड्डावणिय राइअ पायच्छित्त विसोहणत्थं काउस्सग्गं | की हथेली में मुख के आगे योग्य दूरी पर मुँहपत्ति (बंद किनारे करूं ?' गुरुभगवंत कहें करेह' तब ‘इच्छं' कुसुमणि-दुसुमिण | बाहर से दिखे, इस प्रकार) रखकर 'सव्वस्स वि राइअ उड्डावणिय राइअ-पायच्छित्त विसोहणत्थं करेमि । दुच्चितिय...' सूत्र बोलें। काउस्सग्गं...अन्नत्थ' सूत्र बोलकर जिनमुद्रा में कामभोगादि (६) देव-वंदन के कुस्वप्न आए हों तो 'सागर वर गंभीरा' तक तथा अन्य । उसके बाद योग-मुद्रा में पैरों के पंजों के सहारे बैठकर दुःस्वप्न आए हों या न आए हों तो भी चंदेसु निम्मलयरा' तक । चादर (खेस) का उपयोग करते हुए 'नमुत्थुणं सूत्र' बोलें। चार बार श्री लोगस्स सूत्र का काउस्सग्ग करें । जिन्हें श्री। (७) पहला सामायिक तथा दूसरा चउविसत्थ आवश्यक लोगस्स सूत्र न आते हो, वे १६ बार श्री नवकार महामंत्र का उसके बाद चादर (खेस) का त्याग कर खड़े होकर काउस्सग्ग करे । यथाविधि काउस्सग्ग पारकर श्री लोगस्स सूत्र | योगमुद्रा में करेमि भंते !'- 'इच्छामि ठामि काउस्सग्गं, जो मे प्रगट रूप में पूर्ण बोलना चाहिए। । राइओ'- 'तस्स उत्तरी-अन्नत्थ सूत्र' क्रमशः बोलकर एक बार (३) चैत्यवंदनादि 'श्री लोगस्स सूत्र' का 'चंदेसु निम्मलयरा' तक का कायोत्सर्ग उसके बाद एक खमासमण देकर खड़े होकर योगमुद्रा में ; करें । श्री लोगस्स सूत्र नहीं आता हो तो चार बार श्री नवकार आदेश मांगें - ‘इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदन | महामंत्र का काउस्सग्ग करें । विधिपूर्वक कायोत्सर्ग पारना करूं?' गुरुभगवंत कहे 'करेह' त्यारे 'इच्छं' कहकर श्री जग । चाहिए । उसके बाद श्री लोगस्स सूत्र'- 'सव्वलोए अरिहंत चिंतामणि सूत्र से जय वीयराय सूत्र' पूर्ण निश्चित मुद्रा में बोलें। चेइआणं-अन्नत्थ सूत्र' क्रमशः बोलकर एक बार श्री लोगस्स (चैत्यवंदन के समय चादर का उपयोग करें।) उसके बाद | सूत्र' का 'चंदेसु निम्मलयरा' तक का कायोत्सर्ग जिनमुद्रा में सत्रह संडासा पूर्वक चार खमासमण देते समय एक-एक करें । जिन्हें श्री लोगस्स सूत्र' नहीं आता हो वे चार बार श्री खमासमण के बाद भगवान्हं' से 'सर्व साधु हं' तक अनुक्रम । नवकार महामंत्र का कायोत्सर्ग करें । तथा विधिपूर्वक पूर्ण करें से बोलकर वंदना करें। उसके बाद श्रावक दोनों हाथ जोड़कर । उसके बाद 'श्री पुक्खर-वर द्दीवड्डे सूत्र-सुअस्स भगवओ'इच्छकारी समस्त श्रावकने वांदुं छु ?' ऐसा कहें। वंदणवत्तियाए-अन्नत्थ' क्रमशः बोलकर 'श्री नाणम्मि (४) सज्झाय (स्वाध्याय) दंसणम्मि' की आठ गाथाओं का जिनमुद्रा में कायोत्सर्ग करें। उसके बाद सत्रह संडासापूर्वक एक खमासमण देकर। जिन्हें यह गाथा नहीं आती हो वे आठ बार श्री नमस्कार योगमुद्रा में आदेश मांगें - ‘इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! । महामंत्र का कायोत्सर्ग करें। उसके बाद विधिपूर्वक पूर्ण क सज्झाय संहिसाहुं ?' गुरु भगवंत कहें-'संहिसावेह' तब 'इच्छं। योगमुद्रा में श्री सिद्धाणं बुद्धाण' सूत्र बोलें। कहकर, पुनः एक बार विधिपूर्वक खमासमण देकर खड़े होकर। (८) तीसरा वांदणां आवश्यक योगमुद्रा में आदेश मांगें - 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् !। उसके बाद यथाजात मुद्रा में तीसरे (वांदणां) आवश्यक सज्झाय करूं?' गुरुभगवंत कहें 'करेह' तब ‘इच्छं' कहें ।। की मुंहपत्ति के ५० बोल से पडिलेहण करें तथा बाद में २५ उसके बाद यथाजात मुद्रा में बैठकर श्री नवकार महामंत्र | आवश्यक सम्भालकर ३२ दोषों को टालकर द्वादशावत प्रत्यक्ष एक बार बोलकर 'भरहेसर-बाहुबली' सज्जाय बोलें । (वांदणां) वंदन करें। तथा उसके बाद एक बार श्री नवकार महामंत्र प्रत्यक्ष बोलें। । (९) चोथु प्रतिक्रमण आवश्यक (५) रात्रि-प्रतिक्रमण स्थापना उसके बाद योगमुद्रा में आदेश मांगें-'इच्छाकारण। उसके बाद खड़े होकर योगमुद्रा में प्रश्न पूछने के हाव- ' संदिसह भगवन् ! राइअं आलोउं ?' गुरुभगवंत को
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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