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सज्झाय एक ही बोली जाती है, अर्थात् मांगलिक सज्झाय में बोले । खड़े होकर अन्य भाग्यशाली जिन मुद्रामें सुनें, स्तव बोलकर दूसरी सज्झाय नहीं बोलनी चाहिए । प्रतिक्रमण | पूर्ण होने के साथ ही सबको एक स्वर में एक साथ जिनमुद्रा विधि पूर्ण होने के बाद गुरु के आदेश से कोई भी कितनी में 'नमो अरिहंताणं' बोलकर कायोत्सर्ग पारना चाहिए तथा भी संख्या में सज्झाय बोल सकता है।)
प्रगट रूप से पूर्ण 'लोगस्स सूत्र' बोलना चाहिए। (१२) दुःखक्षय तथा कर्मक्षय हेतु कायोत्सर्ग
(१३) क्षमा-याचना उसके बाद सत्रह संडासापूर्वक एक खमासमण देकर उसके बाद एक खमासमणा देकर पंजों के बल पर घुटनों खड़े होकर योगमुद्रा में आदेश मांगे कि.. 'इच्छाकारेण के सहारे नीचे बैठकर दाहिनी हथेली की मुट्ठी बांधकर संदिसह भगवन् ! दुक्खक्खय-कम्मक्खय निमित्तं चरवला/कटासणा पर स्थापित कर तथा बाई हथेली में काउस्सग्ग करूं?' गुरु भगवंत कहें 'करेह' तब कहे 'इच्छं', मुहपत्ति मुख के आगे रखकर बोलें.. 'दुक्खक्खय-कम्मक्खय निमित्तं करेमि काउस्सग्गं... अन्नत्थ' 'प्रतिक्रमण विधि करते हुए जो कुछ अविधि हुई हो, सूत्र बोलकर जिनमुद्रा में चार बार श्री लोगस्स सूत्र (संपूर्ण) उसके लिए मन - वचन - काया से मिच्छा मि दुक्कडं' का काउस्सग्ग करना चाहिए । जिन्हें लोगस्स सूत्र नहीं आता। (प्रतिक्रमण करते हुए जाने अनजाने प्रमाद वश जो कुछ हो, उन्हें सोलह बार श्री नवकार महामंत्र का काउस्सग्ग करना अविधि हुई हो वह नजर के समक्ष लाकर 'याद कर' क्षमा चाहिए। आदेश प्राप्त करनेवाला एक भाग्यशाली योगमुद्रा में मांगनी चाहिए।) (मात्र पुरुष) 'नमोऽर्हत् कहकर 'श्री लघुशांति स्तव प्रत्यक्ष
श्री देवसिअ-प्रतिक्रमण विधि समाप्त (१४) सामायिक पारने की विधि एक खमासमण देकर ईरियावहियं पडिक्कमण कर (चैत्यवंदन या देववंदन के समय पुरुषों को चादर (खेस) का काउस्सग्ग कर प्रत्यक्ष में लोगस्स सूत्र बोलें।
उपयोग करना आवश्यक है।) ____उसके बाद नीचे चैत्यवंदन मुद्रा में बैठकर योगमुद्रा में उसके बाद एक खमासमण देकर खड़े-खड़े योगमुद्रा में 'चउक्साय सूत्र' चैत्यवंदन के रूप में बोलकर 'नमुत्थुणं- आदेश मांगें.. 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! मुँहपत्ति पडिलेहुं जावंति चेइआई'-एक खमासमण-'जावंत के वि साहू', ?'गुरु भगवंत कहें - 'पडिलेवेह' तब 'इच्छं' कहकर मुहपत्ति के 'नमोऽर्हत्', 'उवसग्गहरं स्तोत्र' तथा पूर्ण 'जय वीयराय सूत्र'। ५० बोल से पडिलेहण करें। उसके बाद एक खमासमण देकर बोलना चाहिए । (उसमें 'जावंति चेइआई, जावंत के वि खड़े-खड़े योगमुद्रा में आदेश मांगे - 'इच्छाकारेण संदिसह साहू' तथा 'जय वीयराय सूत्र आभवमखंडा' तक भगवन् ! सामायिक पारुं ?' भगवंत कहे 'पुणो वि कायव्वं' मुक्तासुक्ति-मुद्रा में बोलना चाहिए।
(= पुनः दूसरी बार सामायिक करने योग्य है ।) तब (देवसिअ प्रतिक्रमण प्रारंभ होने के बाद अनिवार्य 'यथाशक्ति' (=मेरी शक्ति के अनुसार सामायिक करने का संजोगों के कारण प्रतिक्रमण में देर से आए हुए भाग्यशाली प्रयत्न करूगा ।) कहे। उसके बाद एक खमासमण देकर खड़ेको यदि सबके साथ प्रतिक्रमण स्थापन करने की भावना हो | खड़े योगमुद्रा में आदेश मांगे - 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! तो सामायिक लेकर, मुहपत्ति पडिलेहण कर पच्चक्खाण सामायिक पार्यु ?' गुरुभगवंत कहें 'आयारो न मोत्तव्यो' कर, सकल कुशल-वल्ली चैत्यवंदन के साथ भाववाही (=आचार छोड़ना नहीं चाहिए।) तब तहत्ति' (=आपकी बात चैत्यवंदन बोलकर, 'जं किंचि नाम तित्थं' तथा 'नमुत्थुणं' यथोचित है, मुझे विश्वास है।) कहना चाहिए। (यथाशक्ति तथा सूत्र बोलकर 'भगवान्हं' आदि चार खमासमण देकर एक तहत्ति' बोलने के बाद 'इच्छं 'बोलने की आवश्यकता नहीं है। साथ प्रतिक्रमण स्थापन करनेवाले भाग्यशाली को यदि चार बोलने से अविधि कहलाती है।) थोय करनी बाकी हो, वे सामायिक पारते समय चउक्कसाय उसके बाद नीचे पैरों के पंजे के सहारे घटनों के आधार चैत्यवंदन तथा नमुत्थुणं सूत्र बोलकर अरिहंत-चेइआणं...से पर बैठकर दाहिनी हथेली की मुट्ठी बनाकर चरवला/कटासणा सिद्धाणं बुद्धाणं-वेयावच्चगराणं अन्नत्थ बोलकर, चौथी। के ऊपर स्थापित करनी चाहिए तथा बाई हथेली में मुख के आगे थोय बोलकर नीचे बैठकर नमुत्थुणं से जय वीयराय तक उन मुहपत्ति रखकर श्री नवकार महामंत्र एक बार बोलकर (अन्य मुद्राओं में बोलना चाहिए । यह अपवादिक क्रिया होने के मत के अनुसार श्री नवकारमंत्र खड़े-खड़े योगमुद्रा में बोलकर कारण वर्ष में एकाध दिन पू. गुरुभगवंत की आज्ञा से की जा नीचे बैठकर) सामाइय-वय-जुत्तो सूत्र' बोलना चाहिए। सकती है। परन्तु बारम्बार इस प्रकार करना उचित नहीं है। यदि ज्ञान-दर्शन अथवा चारित्र के उपकरण की स्थापना प्रतिक्रमण एक साथ स्थापन करनेवाले भाग्यशाली ही की गई हो तो दाहिनी हथेली सीधी रखकर एक बार श्री नवकार प्रतिक्रमण दरम्यान सूत्र बोल सकते है । पौषधव्रत धारण महामंत्र प्रत्यक्ष रूप में उत्थापन मुद्रा में बोलना चाहिए। करनेवाले साथ ही प्रतिक्रमण स्थापन करें।
(श्री सामायिक पारने की विधि समाप्त)
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