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एकसो एंशी बिंब प्रमाण, एकसो एञ् (एन्)-शी बिम्-ब-प्रमा-ण, एक सौ अस्सी प्रतिमाओं का प्रमाण सभा-सहित एक चैत्ये जाण। सभा-सहित एक चैत्-ये जाण ।
सभा सहित प्रत्येक चैत्य में जानना सो कोड बावन कोड संभाल, सो कोड बावन कोड सम्-भाल, एक सौ करोड़ बावन करोड़ को याद कर लाख चोराणु सहस चौंआल ॥६॥ लाख चोराणुं सहस चौंआल ॥६॥ चौरानवे लाख चौंवालीस हजार। ६. गाथार्थ : एक सौ अस्सी प्रतिमाओं का प्रमाण सभा सहित प्रत्येक चैत्य में जानना । एक सौ करोड़ बावन करोड़ चौरानवे लाख चौंवालीस हजार को याद करके वंदन करता हूँ। ६. सातसें उपर साठ विशाल, सातसें उपर साठ विशाल, सात सौ के उपर साठ विशाल सवि बिंब प्रणमुंत्रण काल। सवि बिम्-ब-प्रण-मुंत्रण काल। सर्व प्रतिमाओं को तीनों काल मैं प्रणाम करता हूँ, सात कोडने बहोंतेर लाख, सात कोडने बहोन्-तेर लाख, सात करोड और बहत्तर लाख भवनपति मां देवल भाख ॥७॥ भवन पति मां देवल भाख ॥७॥ मंदिर भवनपति में बोल । ७. गाथार्थ : सात सौ साठ (७६०) ऐसे विशाल सर्व जिन प्रतिमाओं को तीनों काल में वंदन
नपति देवलोक में सात करोड और बहतर लाख (७,७२ लाख) जिनमंदिर हैं । ७. एकसो एंशी बिंब प्रमाण, एक-सो एञ् (एन्)-शी बिम्-ब प्रमाण, एक सौ अस्सी प्रतिमाओं के प्रमाण से एक एक चैत्ये संख्या जाण। एक एक चै-त्ये सङ्-ख्या जाण । प्रत्येक चैत्य में संख्या जानना तेरसे कोड नेव्याशी कोड, तेरसें कोड नेव्-याशी कोड,
तेरह सौ करोड़ नव्यासी करोड साठ लाख वंदूं कर जोड ॥८॥ साठ लाख वन्-दुं कर-जोड ॥८॥ साठ लाख को हाथ जोडकर वंदन करता हूँ। ८. गाथार्थ : उन (७,७२ लाख) जिन मंदिरों में एक सौं अस्सी (१८०) जिन प्रतिमाए हैं । अतः सर्व जिनमंदिरों में रही हुई जिनप्रतिमाओं की कुल संख्या तेरह सौ करोड नव्यासी करोड़ और साठ लाख होती हैं। उनको में दो हाथ जोडकर वंदन करता हूँ। ८. बत्रीसें ने ओगणसाठ, बत्-रीसें ने ओगण-साठ,
बत्तीस सौ और उनसठ तिर्छा-लोकमां चैत्यनो पाठ। तिर्च-छा लोकमां चैत्-य-नो पाठ। तिर्छा लोक में चैत्यों का पाठ है। त्रण लाख एकाणुं हजार, त्रण लाख एकागुं हजार,
तीनलाख इकानवे हजार त्रणसें वीश ते बिंब जुहार ॥९॥त्रणसें वीश ते बिम्-ब जुहार ॥९॥ तीन सौ बीस उन प्रतिमाओं को तुम वंदन करो।९ गाथार्थ : ति लोक (मनुष्य लोक) में तीन हजार, दो सौ और उनसठ (३,२५९) शाश्वत जिनमंदिरों में तीन लाख, इकानवे हजार, तीन सौ और बीस जिनप्रतिमाएं हैं, उनको मैं वंदन करता हूँ।९. व्यंतर ज्योतिषीमां वळी जेह, व्यन्-तर-ज्यो-तिषीमां वळी जेह, व्यंतर और ज्योतिष्क में जो शाश्वता जिन वंदुं तेह। शाश्-वता जिन वन्-दुं तेह। शाश्वत जिनेश्वरों की हैं उन्हें मैं वंदन करता हूँ। ऋषभ चंद्रानन वारिषेण, ऋषभ चन्-द्रा-नन वारि-षेण, श्री ऋषभदेव, श्री चंद्रानन, श्री वारिषेण, वर्धमान नामे गुणसेण ॥१०॥ वर-धमान-नामे गुण-सेण ॥१०॥। और वर्धमान नामक गुणों की श्रेणी रूप ॥१०॥ गाथार्थ : व्यंतर और ज्योतिष्क देवलोक में दिव्य गुणों के साम्राज्य से शोभित ऐसे श्री ऋषभ, चंद्रानन, वारिषेण और वर्धमान नाम के शाश्वत जिन प्रतिमा को मैं वंदन करता हूँ। १०.. समेतशिखर वंदुं जिन वीश, समे-त शिख-र वन्-दुं जिन-वीश, सम्मेत शिखर पर्वत पर बीस जिनेश्वरों को मैं वंदन करता हूँ, अष्टापद वंदुं चोवीश।
अष्-टा-पद वन्-दुं चोवीश। अष्टापद पर्वत पर चौबीस को मैं वंदन करता हू, विमलाचलने गढ गिरनार विमला-चल ने गढ गिर-नार, विमलाचल और गिरनारगढ आबु उपर जिनवर जुहार ॥११॥ आबु उपर जिन-वर जुहार ॥११॥ आबु पर्वत के जिनेश्वरों को तुं जुहार।११. गाथार्थ : श्री सम्मेत शिखर तीर्थ में (रहे हुए) बीस जिनेश्वरों की, श्री अष्टापद तीर्थ में (रहे हुए) चौबीस जिनेश्वरों की, श्री शत्रुजय गिरिराज में, श्री गिरनार तीर्थ में, श्री आबु तीर्थ में रहे हुए जिनेश्वरों की और तीर्थ की मैं स्तुति करता हूँ। अर्थात् वंदना करता हूँ।११ शंखेश्वर केसरिओ सार, शंखेश्-वर केस-रिओ सार, सार रूप श्री शंखेश्वर और श्री केशरियाजी को, तारंगे श्री अजित जुहार। ता-रङ्-गे श्री अजि-त जुहार। तारंगा पहाड़ पर श्री अजितनाथ को जुहार, अंतरिक्ख वरकाणो पास, अन्-त रिक्ख वर-काणो पास, श्री अंतरिक्ष और श्री वरकाणा श्री पार्श्वनाथ को, जीराउलो ने थंभण पास ॥१२॥ जीरा-उलो ने थम्-भणपास ॥१२॥ श्रीजीरावला और श्रीस्थंभन में श्री पार्श्वनाथ को।१२. गाथार्थ : जगत में सारभूत ऐसे श्री शंखेश्वर तीर्थ, श्री केशरीयाजी तीर्थ, श्री तारंगा तीर्थ पर श्री अजितनाथ भगवान, श्री अंतरीक्ष पार्श्वनाथ, श्री जीराउला पार्श्वनाथ और श्री स्तंभन पार्श्वनाथ भगवान को मैं वंदना करत
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