________________
२२०
देवई
(२८) देवकी वसुदेव की पत्नी तथा श्रीकृष्ण की माता । 'देवकी का पुत्र कंस को मारेगा।' ऐसा किसी मुनि से जानकर उसके छह पुत्रों को, भाई कंस ने मार डालने के लिए ले लिया। सातवां संतान कृष्ण देवकी के पुत्रपालन की तीव्र इच्छा से हरिणैगमेषी देव को प्रसन्न कर कृष्ण ने गजसुकुमाल संतान दिलाया । जिसने छोटी उम्र में दीक्षा ली । उस समय 'भवचक्र की अन्तिम माँ बनाना' ऐसा वरदान दिया। देवकी ने शील को अखंड रखकर, चारित्र ग्रहण कर अंत में देवलोक गई।
Jain Education International
दोवई
धारणी
कलावई
पुप्फचूला
कण्हटुमहिसीओ
(३२) पुष्पचूला : पुष्पचूलपुष्पचूला दोनों जुड़वें भाई-बहनों में अत्यन्त स्नेह होने के कारण पिता के द्वारा दोनों का विवाह करा दिया गया। अघटित होता देखकर माता को आघात लगने के कारण वह दीक्षा लेकर स्वर्ग में गई। वहाँ से स्वर्ग-नरक के सपने दिखलाकर पुष्पचुला को प्रतिबोधित किया। अणिकापुत्र आचार्य के पास दीक्षा दिलाया। स्थिरवास करते हुए अणिकापुत्र आचार्य की आदरपूर्वक सेवा-भक्ति करते हुए एक दिन केवलज्ञान हुआ। उसके बाद आचार्यश्री को जब तक ख्याल नहीं आया तब तक वेयावच्च करती रही । अंत में सिद्धिपद को प्राप्त किया
- -
|
गौरी(३३) पद्मावती गांधारी लक्ष्मणा सुसीमा जंबूवती सत्यभामा और रुक्मिणीः ये आठों कृष्ण की अलग-अलग देश में जन्म ली हुई पटरानी श्री अलग-अलग समय में हुई शील की परीक्षा में प्रत्येक पार उतरी थी । अन्त में प्रत्येक ने दीक्षा लेकर आत्मकल्याण किया था ।
1
(२९) द्रौपदी पूर्वजन्म में किए गए नियाणा के प्रभाव से पांच पांडवों की पत्नी बनी। नारद के द्वारा निर्धारित व्यवस्था के अनुसार जिस दिन जिस पति के साथ रहना हो, उस दिन अन्य के साथ भाई के समान व्यवहार करने का अत्यन्त दुष्कर कार्य करने के कारण महासती कहलाती थी। अनेक कष्टों के | बीच भी शील को अखंड रखकर, चारित्र ग्रहण कर, अंत में देवलोक में गई।
(३०) धारिणी चंदनबाला की माता, एक बार शतानीक राजा के द्वारा नगर पर चढ़ाई करने के कारण अपनी पुत्री वसुमती के साथ भाग गईं। परन्तु सैनिकों के द्वारा पकड़ी गई। उसके द्वारा जंगल में अनुचित मांग करने के कारण शीलरक्षा के लिए जीभ काटकर प्राणत्याग किया था ।
(३१) कलावती : शंख राजा की शीलवती स्त्री । भाई के द्वारा भेजे गए कंगनों की जोड़ी पहनकर प्रशंसा से कहे गए वाक्यों के सम्बन्ध में गलत फहमी होने के कारण पति को उसके शील पर शंका उत्पन्न हुई। उसने कंगन के साथ कलाई भी काट डालने की आज्ञा की। जल्लादों ने उसे जंगल में ले जाकर वैसा किया, परन्तु शील के प्रभाव से उसके हाथ फिर ज्यों के त्यों हो गए। जंगल में पुत्र को जन्म दिया तथा तापसों के आश्रम में आश्रय लिया। कंगन पर लिखे गए नाम पढ़कर शंका दूर होने के बाद राजा ने बहुत पश्चात्ताप किया। वर्षों बाद दोनों का मिलन हुआ, तब जीवन का रंग बदल जाने के कारण दीक्षा लेकर आत्मकल्याण किया तथा देवलोक में गई। शंखकलावती अन्त में पृथ्वीचंद्र-गुणसागर होकर मोक्ष में गए ।
(३४ ) यक्षा,
यक्षदत्ता,
येणा भूअदित्रा
भूता, भूतदत्ता, सेणा, वेणा और रेणा स्थूलभद्र की सात बहनें । स्मरणशक्ति अत्यन्त तीव्र । क्रमशः एक, दो, तीन तक सात बार सुने तो याद रह जाए। सातों बहनों ने दीक्षा स्वीकार की । यक्षासाध्वी की प्रेरणा से भाई मुनि श्रीयक पर्वतिथि का उपवास करते हुए कालधर्म पाकर देवलोक में गए तब संघ की सहायता से प्रायश्चित हेतु श्री सीमंधरस्वामी के पास गए। आशय शुद्धि के कारण प्रायश्चित नहीं दिया। परन्तु भगवान ने भरतक्षेत्र में संघ के लिए चार अध्ययन दिए । सातों बहन साध्वियां पूर्व पड़ते स्थूलभद्रस्वामी को एक बार वन्दन करने गई । तब अहंकार के कारण वे सिंह का रूप धारण कर बैठे थे गुर्वाज्ञा से पुनः वंदन करने गई, वे मूलरूप गए थे। सातों साध्वियाँ निर्मल संयम जीवन का पालन कर आत्मकल्याण की साधना की ।
।
। में आ
For Private & Personal Use Only
भयणीओ थूलभद्दस्स क्वा सेना
रेणा
inetitary.org