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चिल्लणादेवी
बंभीसुंदरी
(१९) पभावई
प्रभावती: चेडा राजा की पुत्री तथा सिंधु-सौवीर के राजर्षि उदायन की धर्मपत्नी।
- कुमारनंदी देव के द्वारा बनाई हुई जीवितस्वामि की प्रतिमा की पेटी उसके हाथों से ही खुली । वह परमात्मा के मन्दिर में स्थापन कर प्रतिदिन अपूर्व जिनभक्ति करती थी । एक बार दासी के द्वारा मंगाए हुए वस्त्र सफेद रंग के होते हुए भी लाल वर्ण के दिखने के कारण तथा नृत्यभक्ति के समय धड़ मस्तक से रहित दिखने के कारण मृत्यु नजदीक जानकर प्रभुवीर के पास दीक्षा लेकर देवलोक में गई।
(२०) चेल्लणा : चेडा महाराजा की पुत्री तथा श्रेणिक राजा की धर्मपत्नी । प्रभु महावीरदेव की परमश्राविका तथा परम धर्मानुरागिणी थी। एक बार शीत (२१-२२) ब्राह्मी सुंदरी : ऋषभदेव ऋतु की तीव्र ठंडी में तालाब के किनारे भगवान की विदुषी पुत्रियाँ, एक नंगे बदन सारी रात कायोत्सर्ग ध्यान में लिपिज्ञान में तथा दूसरी गणित में प्रवीण रहनेवाले साधु की चिंता करते हुए | थी । सुंदरी ने चारित्र प्राप्ति के लिए श्रेणिक को उसके चरित्र पर शंका उत्पन्न ६०,००० वर्षों तक आयंबिल का तप हुई । परंतु प्रभुवीर के वचन से उसे किया था। दोनों बहनों ने दीक्षा लेकर अखंड शीलवती जाना तब वह शंका जीवन उज्ज्वल बनाया । बाहुबली को दूर हो गई । चेल्लणाने विशुद्ध आराधना उपदेश देने के लिए दोनों साध्वी बहनें एक कर आत्मकल्याण की साधना की थी। साथ गई थी।अंत में मोक्ष को प्राप्त किया।
रेवड
कुती
(२४) रेवती : भगवान महावीर स्वामी की परमश्राविका । गोशालक की तेजोलेश्या से प्रभु को छह महीने तक हुई वेदना काल में भक्तिभाव से कुष्मांडपाक वहोराकर प्रभुवीर को शाता देकर तीर्थंकर नामगोत्र बांधा था । अनागत चौबीसी में समाधि नामक सत्रहवें तीर्थंकर होंगे।
(२५) कुंती : पांच पांडवों की माता। अनेक कष्टमय प्रसिद्ध जीवन प्रसंगों के बीच भी धर्मश्रद्धा की ज्योत प्रज्वलित रखी थी। अन्त में पत्रों तथा पुत्रवधूओं के साथ चारित्र ग्रहण कर मोक्ष में गई थी।
(२३)रुक्मिणी : कृष्ण की पटरानी से भिन्न विशुद्ध शीलवती सन्नारी ।
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(२६) सिवा
शिवादेवी : चेडा महाराज की पुत्री तथा चंडप्रद्योत राजा की परम शीलवती
पटरानी। देवकृत उपसर्ग में भी अचल रही । उज्जयिनी नगरी में प्रगट हुई अग्नि इस सती के हाथों से पानी छिड़कने से शान्त हुई थी। अन्त में चारित्र लेकर सिद्धिपद को प्राप्त किया।
(२७) जयंति : शतानिक राजा की बहन तथा रानी मृगावती की ननंद । तत्त्वज्ञ तथा विदुषी इस श्राविका ने प्रभुवीर को अनेक तात्त्विक प्रश्न पूछे थें । प्रभुवीर ने उसके प्रत्युत्तर दिए थे । वह कौशांबी के प्रथम शय्यातर
के रूप में प्रसिद्ध थी। अंत में दीक्षा लेकर सिद्धिगति पाई।
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