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________________ and RANAMA AAINA (१०) स्थूलभद्र : थलभद्दा नंदराजा के मंत्री शकटाल के बड़े पुत्र । युवावस्था में कोशा गणिका के मोह में लिप्त । परन्तु पिता की मृत्यु की घटना के कारण वैराग्य पाकर आर्य संभृतिविजय के पास दीक्षा लेकर एकबार कोशा गणिका के यहाँ गुरु की अनुमति से चातुर्मास किया । काम के घर में जाकर काम को हराकर कोशा को धर्म में स्थिर कर गुरु के श्रीमुख से 'दुष्कर-दुष्क रकारक' उपाधि को प्राप्त कर ८४ चौबीसी तक अपना नाम अमर किया । आर्य भद्रबाहुस्वामी के पास अर्थ से दस पूर्व तथा सूत्र से शेष चार पूर्व, इस प्रकार चौदह पूर्वो का ज्ञान प्राप्त किया था। कालधर्म प्राप्त कर पहले देवलोक में गए। (११) वज्रस्वामी : वयन तुंबवन गाँव के धनगिरि व सुनंदा के पुत्र, पिता के द्वारा उसके जन्म से पहले ही दीक्षा ग्रहण करने की बात जानकर हमेंशा रोते रहने के कारण माता का मोह भंग किया । माता ने धनगिरि मुनि को वहोरा दिया। साध्वी के उपाश्रय में रहकर ११ अंग कंठस्थ किया । माता ने बालक को वापस लेने के लिए राजदरबार में झगड़ा किया। संघ के समक्ष गुरु के हाथ में से रजोहरण को लेकर नाचने लगा, और आखिर दीक्षा ग्रहण की । राजा ने बालक की इच्छानुसार न्याय किया । उसके संयम से प्रसन्न होकर देवताओं ने आकाशगामिनी तथा वैक्रियलब्धि विद्या दिया । भयंकर दुष्काल के समय सारे संघ को आकाशगामी पट के द्वारा सुकाल के क्षेत्र में ले गए, तथा बौद्ध राजा को प्रतिबोध देने के लिए अन्यक्षेत्र से लाखों पुष्प लाकर शासन प्रभावना की । अन्तिम दशपूर्वधर बनकर अंत में कालधर्म को प्राप्त किया । इन्द्र ने महोत्सव किया। (१२)नंदिषेण : इस नाम के दो महापुरुष हुए हैं। एक अद्भुत वेयावच्ची नंदिषेण, जिसने देवताओं के द्वारा ली गई कठोर परीक्षा भी अपूर्व समता भाव से उत्तीर्ण किया तथा दूसरे श्रेणिक राजा के पुत्र नंदिषेण । जिसने प्रभुवीर से प्रतिबोध पाकर अद्भुत सत्त्व दिखाते हुए चारित्र ग्रहण किया तथा कर्मवश उठने वाली भोगेच्छाओं को दबाने के लिए उन विहारसंयम तथा तपश्चर्या के योग का सेवन किया, जिसके प्रभाव से उन्हें अनेक लब्धिया प्राप्त हुई । एक बार गोचरी के प्रसंग पर वेश्या के घर पहुच गए, वहा धर्मलाभ का प्रतिभाव 'यहा अर्थलाभ की आवश्यकता है।' वाक्य से मिला । मानवश एक तिनका खींचकर साढे बारह करोड स्वर्णमुद्राओं की वर्षा की । वेश्या के आग्रह से संसार में रहे, परन्तु देशना लब्धि से प्रतिदिन १० व्यक्ति को प्रतिबोध करते थे । १२ वर्षों में एक दसवां व्यक्ति एक ऐसा सुनार आया, जिसने प्रतिबोध पाया ही नहीं । आखिर गणिका ने 'दसवें आप' ऐसा मजाक करते हुए उनकी मोहनिद्रा टूटने से दीक्षा लेकर आत्मकल्याण की साधना की। नंदिसेण सिंहगिरी (१३) सिंहगिरिः प्रभु महावीरदेव की बारहवी पाट पर बिराजमान प्रभावशाली आचार्य । अनेक प्रकार के शासनसेवा के कार्य करने के साथ-साथ वे वज्रस्वामी के गुरु भी बने थे। (१४) कृतपुण्यक (कयवन्ना शेठ): पूर्वभव में मुनि को तीन बार खंडित दान देने के कारण धनेश्वर शेठ के वहा पधारे हुए कृतपुण्यक को वर्तमान भव में वेश्या के साथ, पुत्ररहित चार श्रेष्ठि पुत्रवधूओं के साथ तथा श्रेणिक राजा की पुत्री मनोरमा के साथ, इस प्रकार तीन बार खंडित भोग तथा श्रेणिकराजा का आधा राज्य प्राप्त हुआ था । संसार के विविधभोगों को भोगकर प्रभु वीर के पास पूर्वभव का वृतांत सुनकर दीक्षा ग्रहण कर स्वर्गवासी हुए। कयवन्नी dain Education International wwwjanelibrarpR
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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