SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवमें व्रत ( पहले शिक्षाव्रत ) के पांच अतिचारों का प्रतिक्रमण तिविहे दुप्पणिहाणे, तिवि-हे दुप्-पणि-हाणे, तीन प्रकार के दुष्प्रणिधान से, अणवट्ठाणे तहा सइ विहूणे। अण-वट्-ठाणे तहा सइ-विहू-णे। अविधिपूर्वक करने से और विस्मति के कारण, सामाइअ वितहकए, सामा-इअ वितह-कए, सामायिक की विराधना द्वारा, पढमे सिक्खावए निंदे ॥२७॥ पढ-मे सिक्-खा-वए निन्-दे ॥२७॥ प्रथम शिक्षा-व्रत में मैं निंदा करता हूँ। २७. गाथार्थ : १. मन का दुष्ट प्रणिधान, २. वचन का दुष्ट प्रणिधान, ३. काया का दुष्ट प्रणिधान (व्यापार) ४. (दो घडी से ज्यादा समय तक) अविनीत बनकर सामायिक करना और ५. याद न रहने से सामायिक व्रत को भूल जाने स्वरुप स्मृतिभ्रंश; इस तरह सामायिक गलत तरह से किया हो तो वह पहले सामायिक शिक्षा व्रत में लगे हुए पांच अतिचारों में से जो कोई दोष लगा हो, उसकी में आत्मसाक्षी से निंदा करता हूँ। २७. दशवें व्रत (दूसरे शिक्षाव्रत) के पांच अतिचारों का प्रतिक्रमण आणवणे पेसवणे, आण-वणे पेस-वणे, वस्तु को बाहर से मंगवाने से और बाहार भेजने से सद्दे रुवे अपुग्गलक्खेवे। सद्-दे रूवे अ पुग्-ग-लक्-खेवे । शब्द करके, रूप दिखाकर या देसा-वगासिअंमि, देसा-वगा-सि-अम्-मि, देशावगासिक के वस्तु फेंककर अपनी उपस्थिति बताने से बीए सिक्खावए निंदे ॥२८॥ बीए सिक्-खा-वए निन्-दे ॥२८॥ दूसरे शिक्षा व्रत में मैं निंदा करता हूँ। २८. गाथार्थ : १. आनयन प्रयोग : नियम बाहर की भूमि से वस्तु मंगवाने से; २. प्रेष्य प्रयोग : हद के बाहर वस्तु भेजने से; ३. शब्दानुपात : आवाज करके बुलाने से; ४. रुपानुपात : अपना रुप दिखाने से; ५. पुद्गल-प्रक्षेप : वस्तु को फेंककर अपनी उपस्थिति बताने से; इस तरह दूसरे देशावगासिक शिक्षाव्रत में लगे हुए पांच अतिचारों में से जो कोई भी अतिचार लगा हो, उसकी मै आत्मसाक्षी से निंदा करता हूँ। २८. आणवणेपेसवणे पेसवणे आणवणे पुग्गलको वस्त्र लाता हुआ, पुस्तक ले जाता हुआ, किसी को बुलाते हुए, कंकड़ फेंकनेवाला क्रियाशील | सामायिक व्रतधारी देशावगासिक व्रतधारी बताया गया है। २८. अग्यारहवा व्रत (तीसरे शिक्षा व्रत) के पांच अतिचारों का प्रतिक्रमण संथारुच्चार-विहिसन्-था-रुच्-चार-विहि संथारा और उच्चार की विधि में हुए प्रमाद के कारण, पमाय, तह चेव भोयणाभोए। पमा-य, तह चेव भोय-णा-भोऐ। और इसी प्रकार भोजन आदि की चिंता के कारण पोसह-विहि-विवरीए, पोस-ह-विहि-विवरीए, पौषध की विधि में विपरीतता से सिक्खावए निंदे ॥२९॥ तड़-ए-सिक-खा-वए निन-दे ॥२९॥ तीसरे शिक्षा व्रत में मैं निंदा करता ह । २९ माथार्थ : संथारा संबंधित विधि में (१) पडिलेहण-प्रमार्जन नही करने रुप; (२) पडिलेहण-प्रमार्जन जैसे तैसे करने स्वरुप प्रमाद करने से तथा लघुनीति (मूत्र) और बडीनीति (संडास) संबंधित विधि में (विसर्जन भूमि के विषय में ) (३) पडिलेहणप्रमार्जन नही करने रुप तथा (४) पडिलेहण-प्रमार्जन जैसे-तैसे करने रुप प्रमाद करने से और (५) भोजन चिंता करने रुप; इस तरह पौषध-विधि विपरीत करने से तीसरे पौषधोपवास शिक्षाव्रत के इन पांच अतिचारों में से लगे हुए अतिचारो की मैं निंदा करता हूँ। २९. je tocationem rate & Personal use only
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy