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________________ छट्टे व्रत (=पहला गुणवत)के पांच अतिचारों का प्रतिक्रमण गमणस्स उ परिमाणे, गम-णस्-स उपरि-माणे, और गमन के परिमाण में हे अतिरिअंच। दिसा-स उड-ढम अहे अ-तिरि-अम-च। ऊर्ध्व और अधो तथा तिर्यग दिशाओं में वुड्डि सइ अंतरद्धा, वुड्-ढि सइ-अन्-त-रद्-धा, | वृद्धि होने से और विस्तृति होने से ( भूल जाने से) पढमंमि गुणव्वए निंदे ॥१९॥ पढ-मम्-मि गुणव्-वए निन्-दे ॥१९॥ प्रथम गुण व्रत में मैं निंदा करता हूँ। १९. गाथार्थ :(१) उपर की,(२)नीचे की और(३) तिर्यग् (= तिर्थी) दिशाओं में गमन के परिमाण से अधिक जाने से (एक दिशा में से कम करके दूसरी दिशा में वृद्धि करने से ) (४) बढ़ाने से और (५) विस्मृति होने से पहले गुणव्रत (दिक्परिमाण व्रत) में (लगे हुए) अतिचारों की मैं निंदा करता हूँ। १९. सातवें व्रत (दूसरा गुणवत) के २० अतिचारों का प्रतिक्रमण मसम्मि अ, मज्-जम्-मि अमन्-सम्-मि अ, मद्य (मदिरा-नशीले पदार्थ) औरमांस का पुष्फे अफले अगंधमल्लेअ। पुष्फे अफले अगन्-ध-मल्-ले । और पुष्प तथा फल का और गंध तथा माला का उवभोग-परिभोगे, उव-भोभ-परि-भोगे, उपभोग और परिभोग करने से बीयंमि गुणव्वओनिए॥२०॥ बीयम्-मि-गुणव-वए निन्-दे॥२०॥ दूसरेगुण-व्रत में (लगे अतिचारों का)मैनिंदा करता हूँ।२० गाथार्थ : मदिरा,मांस(और दूसरे भी अभक्ष्य पदार्थ), पुष्प, फल,सुगंधी पदार्थो और फुल की माला के उपभोग(= जिसका एक बारही उपभोग किया जाए, उसे उपभोग कहते है। जैसे कि भोजन, पानी, फूल, फल आदि), परिभोग (= जिसका बारबार उपयोग किया जाता है, उसे परिभोग कहते है। जैसे की गह, पस्तक, वस्त्र, दागीने स्त्री आदि ) से दूसरे अणुव्रत ( भोगोपभोग-परिमाण व्रत में (लगे हुए)अतिचारों की मैं निंद सचित्ते पडिबद्धे, सच्-चित्-ते पडि-बद्-धे, सचित (सजीव) आहार, (सचित से) संलग्न (सजीव से संलग्न निर्जीव) आहार अपोल-दुप्पोलिअंच आहारे। अपो-ल दुप्-पोलि-अम् च आहारे। अपक्व आहार और अर्ध पक्व आहार तुच्छो-सहि-भक्खणया, तुच्-छो-सहि-भक्-ख-णया, तुच्छ औषध(वनस्पति) के भक्षण से पडिक्कमे देसिअंसव्वं ॥२१॥ पडिक्-कमे देसिअम् सव्-वम् ॥२१॥ दिन में लगे सर्व( पापों) का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ।२१. गाथार्थ : १. सचित्त आहार :सचित्त का त्याग होते हुए भी उसको खाए अथवा परिमाण से ज्यादा खाए, २. सचित्त-संबद्धः सचित्त के साथ मिश्रित वस्तु को खाना, जैसे कि गुटली के साथ आम्रफल इत्यादि, ३. अपक्व आहारः बिना पकाई हुई वस्तु खानी,जैसे कि छाने बिना का गेहूं का आटा इत्यादि, ४. दुष्पक्व आहार ः थोडी कच्ची और थोडी पक्की अर्थात बराबर नही पकी हुए वस्तु खाना, जैसे कि थोडा सेका हुआ मक्काई का भुट्टा इत्यादि और ५. तुच्छ-औषधिभक्षण : तुच्छ पदार्थो का भक्षण करना, अर्थात् जिसमें खाने का कम हो और फेंकने का ज्यादा हो, ऐसी वस्तुएं जैसे कि बैर, सीताफल इत्यादि (इन पाँच अतिचारों में से) दिन संबंधित (लगे हुए) सर्व अतिचारों का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ।२१. आइसक्रीम मद्य मज्जम्मि अमंसम्मि अ/ सचिचे पडिबद्ध मांस फल २२ अभक्ष्य, ३२ अनंतकाय, चार महाविगई, रात्रिभोजन आदि में से कुछ अभक्ष्य पदार्थ तथा अतिभोगासक्ति के प्रतिक रूप में पुष्प-फल दिखलाया गया है। २०. रात्रिभोजनशरिंगण कंदमूळ मक्खन १७६ ay.org
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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