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फल-पूजा की विधि • उत्तम तथा ऋतु के अनुसार श्रेष्ठ फल चढाना चाहिए।।
श्रीफल उत्तम है। निम्नकोटि के, सड़े हुए, गले हुए तथा छिद्र युक्त अथवा अक्षत-नैवेद्य-फल-पूजा के बाद बेर-जामुन आदि फल नहीं चढाने चाहिए। सुयोग्य फलों में गाय का घी लगाकर तथा उसके ऊपर ध्यान रखने योग्य बातें सोने-चांदी के वरख लगाकर उसे सुशोभित करना. प्रभुजी के समक्ष चढाए हुए अक्षत (चावल), नैवेद्य चाहिए।
(मिठाई आदि), फल तथा रुपए-पैसे, वह निर्माल्य देवद्रव्य यदि सम्भव हो तो एक-दो केले के बजाय केले का
कहा जाता है। पूरा समूह चढाना चाहिए।
निर्माल्य देवद्रव्य की सारी सामग्रियों के द्वारा उपार्जित शत्रुजय तीर्थ आदि में जय तलेटी मंदिर के नजदीक
रुपए-पैसे देवद्रव्य के भंडार में भरपाई करना चाहिए। फल बेचनेवालों के पास से खरीदकर फल नहीं चढाना
यदि श्रीसंघ अथवा पेढी ऐसी व्यवस्था करने में समर्थ न हो
तो निर्माल्य देवद्रव्य की यथायोग्य प्राप्त आय अपने हाथों से चाहिए।
देवद्रव्य के भंडार में रखने के बाद चैत्यवन्दन आदि सिद्धशिला के ऊपर की पंक्ति पर सिद्धभगवंतों को
भावपूजा प्रारम्भ करनी चाहिए। फल चढाना चाहिए । बदाम भी चल सकती है।
. घर के प्रत्येक व्यक्ति में भी ऐसे संस्कार डालने का फलपूजा करते समय बोलने
प्रयत्न करना चाहिए। योग्य दोहें:
स्वयं चढाई हुई सामग्री की नगद राशि देवद्रव्य के (पुरुष पहले
भंडार में रखने से वे श्रावक दर्शनाचार के अतिचार 'नमोर्हत्...' बोले।)
स्वरूप देवद्रव्य की उपेक्षा के महान दोष से बच "इन्द्रादिक पूजा भणी,
सकता है। फल लावे धरी राग।
• मंदिर की कोई भी सामग्री उपयोग में लेने से पहले पुरुषोत्तम पूजी करी,
स्वद्रव्य से करने की भावना वाले श्रद्धालु भंडार में मांगे शिवफल त्याग...॥"
कुछ न कुछ द्रव्य अवश्य डाल देना चाहिए। 'ॐ ह्रीं श्री परमपुरुषाय
मंदिर में उपयुक्त सामग्री का उपयोग पूजारी,
उपाश्रय-आयंबिलशाला के कर्मचारी, चौकीदार, परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु
साफ-सफाई करनेवाले मजदूर, पेढी के कर्मचारी निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय
आदि यदि करते हों तो उन्हें अपना कोई भी कार्य फलानि (एक हो तो
नहीं सौंपना चाहिए। 'फलं') यजामहे स्वाहा ।'
। मंदिर में यदि पूजारी रखना ही पड़े तो वह श्रावक के (२७ डंका बजाएँ)
बदले में कार्य करता है, अतः उसे सर्व साधारण अर्थ : हे, प्रभु ! उपरोक्त |
उत्तम फलों से फल-पूजा। खाते में से ही वेतन देना चाहिए । देवद्रव्य में से नहीं भक्तिराग से इन्द्रादि देव
देना चाहिए। प्रभुजी की फल पूजा करने के लिए अनेक प्रकार के
श्रीसंघ के उदारदिल वाले भाग्यशालियों के द्वारा महीना उत्तम फलों से पूजा कर मोक्ष की प्राप्तिरूप फल को
प्रारम्भ होने से पहले निर्माल्य देवद्रव्य के खाते में योग्य पाने में सहायभूत ऐसे त्यागधर्म अर्थात् चारित्रधर्म की राशी श्रीसंघ की ओर से देवद्रव्य की उपेक्षा के दोष से याचना करते हैं । अर्थात् मोक्षफल का दान मांगते हैं। श्रीसंघ को बचाने के लिए देवद्रव्य में डाली जा सकती है।
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