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________________ नैवेद्य-पूजा की विधि उत्तम मिठाईयों से नैवेद्य पूजा। में फैलाना चाहिए । परन्तु ढेर के बीच में गोलाकार कर चूड़ी के समान कभी नहीं बनाना चाहिए। ऐसा करने से भवभ्रमण बढ़ता है। यदि सम्भव हो तो नंदावर्त प्रतिदिन करना चाहिए। क्योंकि यह अत्यन्त लाभदायी तथा मंगलकारी कहलाता है। साथिया (स्वस्तिक) करने की भावना हो तो चावल का चौकोर ढेर करने के बाद चारों दिशाओं में एक-एक रेखा कर साथिया का आकार बनाना चाहिए । उसमें पहली पंखुड़ी दाहिनी ओर ऊपर की ओर मनुष्य गति की करनी चाहिए। दूसरी बांई ओर उपर की ओर देवगति की करनी चाहिए । तीसरी बांई ओर नीचे की ओर तिर्यंचगति की और चौथी दाहिनी ओर नीचे की ओर नरकगति की करनी चाहिए। मात्र स्वस्तिक बनाने की भावनावाले महानुभाव साथिया के चारों दिशाओं की पखुड़ियों को किसी भी प्रकार से मोड़ना नहीं चाहिए।卐 इस प्रकार करना उचित नहीं है।卐 इस प्रकार करना चाहिए। साथिया अथवा नंदावर्त की रचना करते समय दोहे बोलने चाहिए: "अक्षत पूजा करता थकां, सफल करुं अवतार। फल मांगु प्रभु आगळे, तार तार मुज तार। सांसारिक फल मांगीने, रडवडीयो बहु संसार। अष्टकर्म निवारवा, मांगु मोक्ष-फळ सार। चिहुं गति भ्रमण संसारमां, जन्म-मरण-जंजाल । पंचमी गति विण जीवने, सुख नहि तिहुं काल ॥" जो मनुष्य गति तिर्यंच गति -- - नरक गति नोट : स्वस्तिक दर्शन-ज्ञान-चारित्र के तीन ढेर के ऊपर कितने भी संख्या में करनी हो, तो भी नहीं करना चाहिए । विशेष विधि के लिए स्वस्तिक करने वाले नित्यक्रम के अनुसार एक स्वस्तिक अतिरिक्त करें। अष्टमंगल : १. स्वस्तिक, २. दर्पन, ३. कुंभ, ४. भद्रासन, ५. श्रीवत्स,६.नंदावर्त,७. वर्धमान तथा ८. मीनयुगल । मूलविधि के अनुसार प्रभुजी के समक्ष अष्टमंगल का आलेखन प्रतिदिन करना चाहिए। यदि यह सम्भव न हो तो अक्षत पूजा के समय अष्टमंगल की पाटली प्रभुजी के समक्ष रखकर अष्टमंगल के आलेखन का संतोष मानना चाहिए । पाटली की केसर-चंदन पूजा नहीं की जा सकती है। अक्षतपूजा के दरम्यान अन्य कोई भी क्रिया अथवा अन्यत्र दृष्टि भी नहीं करनी चाहिए। मंदिर में अनिवार्य कारण के बिना कटासणा बिछाकर अथवा बिना कटासणा के पालथी मारकर बैठना, यह आशातना है। शुद्ध द्रव्यों से निर्मित स्वादिष्ट मिठाइयों से नैवेद्य - पूजा की जाती है। घर में किसी भी प्रकारी की मिठाई बनाई गई हो तो सबसे पहले प्रभुजी के समक्ष चढानी चाहिए । परन्तु घर में जिन मिठाईयों का उपयोग हो चुका हो अथवा मिठाई बनाए हुए बहुत दिन बीत गए हों, ऐसी मिठाईयां प्रभुजी के समक्ष नहीं चढ़ानी चाहिए। • बाजार की अभक्ष्य मिठाईयाँ, पिपरमिन्ट, चॉकलेट, शक्कर की गोलियाँ, लॉलीपॉप आदि नहीं चढानी चाहिए। यदि ताजी मिठाईया ले जाना सम्भव न हो तो शक्कर, बताशे आदि भक्ष्य मीठी वस्तु ले जाई जा सकती हैं। नैवेद्य एक-दो रखने के बजाय थाल भर जाए, इस प्रकार शक्ति के अनुसार रखना चाहिए। सुयोग्य नैवेद्य के ऊपर सोने-चांदी के वरख आदि लगा सकते हैं। नैवेद्य से चावल, पाट, बाजोट आदि में चिकनाई न आए, इस हेतु से स्वच्छ थाल में ही मिठाई चढाना चाहिए। पारदर्शी कागज़ अथवा जाली से मिठाईयों को ढंककर मखी आदि से बचाना चाहिए। श्री वीशस्थानक तप, वर्धमान तप, ओली आदि के दौरान क्रिया में बतलाई गई विधि के अनुसार प्रत्येक स्वस्तिक पर कम से कम एक नैवेद्य-फल अवश्य चढाना चाहिए। स्वादिष्ट मिठाई को स्वच्छ थाल में रखकर दोहे बोले : (पुरुष पहले 'नमोर्हत्...' बोले) "न करी नैवेद्य पूजना, न धरी गुरुनी शीख। लेशे परभव अशाता, घर-घर मांगशे भीख ॥ अणाहारी पद में कर्या, विग्गह गई अनन्त । दूर करी ते दीजिए, अणाहारी शिवसंत ॥" 'ॐ ह्रीं श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्ट निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय नैवेद्यानि (एक हो तो नैवेद्यं यजामहे स्वाहा.'(२७ डंका बजाएं) अर्थ : हे, प्रभु ! एक भव से दूसरे भव में जाने के क्रम में एक-दो-तीन-चार समय के लिए विग्रह गति में मैंने अनंर बार आहार का त्याग स्वरूप अणाहारीपन (उपवास) किय है । परन्तु उससे मुझे कोई कार्य सिद्धि (मोक्षपद की प्राप्ति नहीं हुई । अतः इस नैवेद्य के द्वारा आपकी पूजा करके। चाहता हूं कि ऐसे क्षणिक नाशवंत अणाहारीपन को दूर क मुझे अक्षय ऐसे अशाहारीपद स्वरूप मोक्ष सुख प्रदान करें। देव गति १३० m alent methone Awwalior type
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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