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अष्टपड मुखकोष बांधने की विधि प्रभुजी की दृष्टि न गिरे ऐसी जगह पर खड़े रहकर पूर्णतया आठ
परत का मुखकोश बांधे,फिर पाणी से हाथ धो ले। ..पुरुषों को खेस से ही मुखकोश बांधना चाहिए। तथा महिलाओं
को भी पूरी लम्बाई तथा चौड़ाई वाले स्कार्फ रुमाल से अष्टपड
मुखकोश बांधना चाहिए। इस तरह आठ
इस तरह परत वाला मुखकोश
मुखकोश को
• मुखकोश के आठ परत से नाक के दोनों छिद्र तथा दोनों होंठ तैयार करे।
बांधे।
सम्पूर्ण रूप से ढंक जाने चाहिए।
मुखकोश एक बार व्यवस्थित रूप से बांधने के बाद बार-बार भाववाही- स्तुतियाँ
मुखकोश का स्पर्श करे अथवा उसे ऊपर-नीचे करे तो दोष १. दर्शनं देव-देवस्य, दर्शनं पाप-नाशनम् । दर्शनं स्वर्ग-सोपानं, दर्शनं मोक्ष-साधनम् ॥
लगता है। २. जेना गुणोना सिंधुना, बे बिंद पण जाणं नही,
• खेस अथवा रुमाल एक ही हाथ से मुंह पर रखकर केसरपूजा, पण एक श्रद्धा दिल महि, के नाथ सम को छे नही;
पुष्पपूजा करने से अथवा प्रभुजी को स्पर्श करने से दोष लगता है। जेना सहारे क्रोडो तरीया, मुक्ति मुज निश्चय सही, . मुखकोश बांधकर ही चन्दन घिसा जाता है, पूजा की जाती है, एवा प्रभु अरिहंतने, पंचांग-भावे हुं नमुं ।.... आंगी की जाती है तथा प्रभुजी का खोखा, मुकुट आदि पर ३. संसार घोर अपार छे, तेमां डूबेला भव्यने, आंगी की जाती है। हे तारनारा नाथ ! शुं भूली गया निजभक्तने । मारे शरण छे आपर्नु, नवि चाहतो हुं अन्य ने,
चन्दन घिसते की विधि तो पण प्रभु मने तारवामां, ढील करो शा कारणे?
• कपूर-केसर-अंबर-कस्तूरी आदि घिसने योग्य द्रव्य साफ हाथों ४. जे द्रष्टि प्रभु दरिसण करे, ते द्रष्टिने पण धन्य छे,
से स्वच्छ कटोरी में निकाल लेने जे जीभ जिनवरने स्तवे, ते जीभने पण धन्य छे ;
चाहिए । सुखड को पाणी से पीवे मुदा वाणी सुधा, ते कर्ण युगने धन्य छे,
धोना चाहिए। तुज नाम मंत्र विशद धरे, ते हृदय ने पण धन्य छे ।। ५.सुण्या हशे, पूज्या हशे, निरख्या हशे पण कोक क्षणे,
अष्टपड मुखकोश बांधने के बाद हे जगत बंधु ! चित्तमां, धार्या नहि भक्ति पणे;
ओरसिया का स्पर्श करना चाहिए जनम्यो प्रभु ते कारणे, दुःखपात्र आ संसारमा,
तथा शद्ध जल एक स्वच्छ कटोरी आ भक्ति ते फलती नथी, जे भाव शून्य आचारमा ।
में लेना चाहिए। . ओरसिया (=शिलबट्टे) स्वच्छ हो
जाए, उसके बाद कपूर में पानी मिलाकर सुखड को ओरसिया पर घिसना चाहिए और घिसा हुआ चन्दन ले लेना चाहिए। उसके बाद केशर आदि में पानी का मिश्रण कर सुखड घिसना चाहिए तथा तैयार केशर को स्वच्छ हथेली से कटोरी में ले लेना
चाहिए। - केसर-चन्दन कटोरी में लेते समय तथा घिसते समय शरीर का
पसीना अथवा नाखून उसमें स्पर्श नहीं करना चाहिए तथा तिलक करने के लिए एक अलग कटोरी में घिसा हुआ केशर ले लेना
चाहिए। - केशर आदि घिसते समय तथा ओरसिया के आस-पास रहते
समय सम्पूर्ण मौन धारण करना चाहिए। • प्रभुजी की भक्ति के अतिरिक्त शारीरिक रोग-उपशान्ति के
सांसारिक कार्यों के लिए चन्दन आदि घिसने से देव-द्रव्य - भक्षण का दोष लगता है।
इस तरह चंदन-केशर घिसा जाता है।
SG११९ SOICElelibrarmony
COM
PRISORRECTA.