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प्रभ के अंग पोंछने वाले महानुभाव को शुद्ध जल से प्रक्षाल करते चाहिए । दर्पण में प्रभुजी के दर्शन होते ही पंखा समय प्रभुजी के सर्वांग को कोमलता से स्पर्श करना चाहिए।
डुलाना चाहिए। शरीर-वस्त्र-पबासन-नाखून-पसीना आदि के स्पर्श दोष से • शुद्ध तथा अखंड अक्षत से अष्टमंगल/ नंदावर्त/ बचते हुए कोमलता पूर्वक प्रभुजी के अंगों को अंग-लंछन से स्वस्तिक का आलेखन मन्त्रोच्चार पूर्वक करना चाहिए। पौंछना चाहिए।
अक्षत से दर्शन-ज्ञान-चारित्र की प्रतिकृति तथा उसके अंग-लुंछन करने से पहले पबासन को साफ करने के लिए ऊपर सिद्धशिला का आलेखन करना चाहिए। 'पाटपौंछना' का प्रयोग, इस प्रकार करना चाहिए कि भगवान मन्त्रोच्चार करते हुए सुमधुर मिठाईयों के थाल से को स्पर्श न करें।
स्वस्तिक के ऊपर नैवेद्य चढ़ाना चाहिए। पबासन के सिवाय गर्भगृह के फर्श को जमीन-पौंछने से साफ ऋतु के अनुसार उत्तम फलों के थाल में से मन्त्रोच्चार करना चाहिए।
करते हुए सिद्धशिला के उपर फल चढ़ाना चाहिए। • अंग-पौंछना, पाट-पौंछना तथा जमीन-पौंछना का परस्पर स्पर्श अंगपूजा तथा अग्रपूजा की समाप्ति के रूप में तीसरी कभी नहीं करना चाहिए।
बार तीन बार निसीहि बोलना चाहिए। तीन बार अंग-लुंछना करने के बाद दशांगधूप के द्वारा भगवान एक खमासमण देकर ईरियावहियं... से लोगस्स तक को सुवासित करना चाहिए।
उच्चारण कर तीन बार खमासमण देना चाहिए। • कपूर-चन्दन मिश्रित कटोरी में से पाँचों ऊँगलियों से प्रभुजी के योगमुद्रा में भाववाही चैत्यवन्दन करते हुए भगवान अंगों में मौन का पालन करते हुए चन्दन पूजा करनी चाहिए।
की तीन अवस्थाओं का स्मरण करना चाहिए। • सुयोग्य तथा स्वच्छ वस्त्र से भगवान के सर्वांग को कोमलता शास्त्रीय रागों के अनुसार प्रभुगुणगान तथा स्वदोष पूर्वक विलेपन पूजा के बाद पौंछना चाहिए।
गर्भित बातें स्तवन के द्वारा प्रगट करनी चाहिए। मौनपूर्वक मन ही मन दोहा बोलते हुए केशर-चन्दन-कस्तूरी इसके बाद धीरे-धीरे भगवान की ओर अपनी पीठ न मिश्रित चन्दन से प्रभुजी के नव अंगों में पूजा करनी चाहिए। हो, इस प्रकार बाहर निकलते हुए घंटानाद करना शुद्ध, अखंड तथा सुगन्धित पुष्प व पुष्पमाल से मौनपूर्वक मन चाहिए। ही मन मन्त्रोच्चार करते हुए पुष्पपूजा करनी चाहिए।
मंदिर के बरामदे में पहुंचकर प्रभुजी की भक्ति के दशांग आदि उत्तम द्रव्यों के द्वारा गर्भगृह के बाहर बाई ओर आनन्द का स्मरण करना चाहिए। मन्त्रोच्चारपूर्वक धूपपूजा करनी चाहिए।
प्रभुजी की भक्ति का आनन्द तथा प्रभुजी के विरह का शुद्ध घी तथा रूई की बाती से पुरुषों को प्रभु की दाहिनी ओर विषाद साथ रखकर जयणापूर्वक घर की ओर तथा स्त्रियों को बाई ओर खड़े होकर मन्त्रोच्चार पूर्वक दीपपूजा प्रस्थान करना चाहिए। करनी चाहिए।
पू. साधु-साध्वीजी भगवंत तथा पौषधार्थी स्त्री-पुरुष • नृत्य के साथ चामर-पूजा तथा शुभ भाव से दर्पण पूजा करनी ही निकलते हुए 'आवस्सही' का उच्चारण करें। मंदिर में ले जाने योग्य सामग्री
निम्नस्तरीय वस्तुए प्रभु के * सोना-चांदी-पित्तल अथवा चन्दन की डिब्बी * सोने-चांदी अथवा
समक्ष नहीं ले जानी चाहिए पित्तल की थाली* तीन कलश ऊपरसे ढके हुए तथा एक वृषभाकारकलश * शुद्ध
बिस्कुट, पिपरमिन्ट, चॉकलेट, केशर-कपूर-अंबर-कस्तूरी * गाय का दूध * कुएँ का अथवा बरसात का शुद्ध जल
अभक्ष्य मिठाई,जामुन, बेर जैसे अभक्ष्य * न्हवण के लिए 'गाय का घी-दूध-दही, शक्कर-पानी' * सुगन्धित फूलों की
फल, सुगंध से रहित अथवा खंडित फूल, डलीया (छाबडी)* सोने तथा चांदी के बरख* शुद्ध रेशम के पक्के रंग के
पान-मसाला, व्यसन-उत्तेजक वस्तु, डार/लच्छा* सुगान्धत धूप* गाय का शुद्ध घा तथा रूइ का बाता फ़ानूस युक्त दवा-औषध अथवा पूजा में उपयोगी नहीं दीपक के साथ * दो सुन्दरचामर * आईना * पंखा * अखंड चावल * स्वादिष्ट
हो, ऐसी वस्तुएं, खाने-पीने की अथवा मिठाईया * ऋतु के अनुसार स्वादिष्ट उत्तम फल * एक पाटपौंछना * भगवान को
शृंगारकी वस्तुए (Cosmatic Items), बिराजमान करने के लिए योग्य थाली* सोने-चांदी के सिक्के अथवा रुपये * सुन्दर अथवा अन्य तुच्छ सामग्री मंदिर में नहीं ले घण्टिया * गम्भीरस्वरों से युक्त शंख * पित्तल अथवा चांदी की डिब्बी में घी-दूध- जानी चाहिए। ले जाने से अविनय का पानी (पैरधोने के लिए लोटे में पानी)।इसके अतिरिक्त परमात्मा की भक्ति में उपयोगी दोष लगता है। यदि भूल से मंदिर में ले गए वस्तुएँ प्लास्टिक, लोहे अथवा अलुमिनम के सिवाय अन्य धातु के बर्तन में ले जाना हों तो उन वस्तुओं को स्वयं के लिए चाहिए। प्रभुभक्ति के साधनों का उपयोग स्वयं के लिए करने से देवद्रव्य के भक्षण का उपयोग में लाने से पहले प.पू.गुरु भगवंत महानदोष लगता है। बटवेका उपयोग टालना चाहिए।
के पास आलोचनालेनी चाहिए।
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