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________________ धारणा-अभिग्रह पच्चक्खाण सूत्र अर्थ सहित धारणा अभिग्रहं पच्चक्खाइ ( पच्चक्खामि ) करता है ( करता हूँ)। उसका अनाभोग, सहसात्कार, महत्त अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा -गारेणं, महत्तरा-गारेणं, सर्वसमाधिप्रत्याकारपूर्वक त्याग करता है (करता हूँ) । सव्व-समाहि-वत्तियागारेणं वोसिरइ (वोसिरामि )। (नोट : विगई त्याग, द्रव्य संक्षेप, अनाचारों का त्याग, कर्मवश रात्रि में भोजन के बाद भोजन का त्याग आदि की धारणा कर पच्चक्खाण लेने के लिए यह सूत्र अत्यन्त उपयोगी तथा आवश्यक है ।) अर्थ : एक नियत समय की मर्यादा के लिए धारण किये गए अभिग्रह का पच्चक्खाण (प्रत्याख्यान) मुट्ठिसहिअ पच्चक्खाणं सूत्र अर्थ सहित मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाइ (पच्चक्खामि) अन्नत्था - भोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्व-समाहिवत्तियागारेण वोसिरइ (वोसिरामि ). अर्थ : मुट्ठिसहित प्रत्याख्यान करता है (करता हूँ) उसका अनाभोग, सहसात्कार, महत्तराकार तथा सर्वसमाधिप्रत्याकार पूर्वक त्याग करता है (करता हूँ । ) नोट : दिन भर में जब भी मुख शुद्ध हो तब यह पच्चक्खाण करना उचित है। पाणहार दिवस - चरिमं पच्चक्खाड़ (पच्चक्खामि ) अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहि वत्तियागारेण वोसिरइ ( वोसिरामि)। अर्थ : दिन के शेष भाग से रात्रि-पर्यंत पानी नामक आहार का प्रत्याख्यान करता है ( करता हूँ)। उसका शाम के पच्चक्खाण ११ पाणाहार पच्चक्खाण सूत्र अर्थसहित दिवस- चरिमं पच्चक्खाइ ( पच्चक्खामि ), चडव्विहंपि आहारं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्व-समाहि-वत्तियागारेणं वोसिरइ ( वोसिरामि ) | अर्थ : दिन के शेष भाग से संपूर्ण रात्रिपर्यंत पच्चक्खाण करता है (करता हूँ) । उसमें चारों ११० Jain Education Intern linnal मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाण पारने का सूत्र अर्थ सहित मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाण फासिअं, पालिअं, सोहिअं, तीरिअं, किट्टिअं, आराहिअं, जं च न आराहिअं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ॥ अर्थ : मुट्ठीसहित प्रत्याख्यान मैंने स्पर्श किया है, पाला है, शोधन किया है, कीर्त्तन किया है, आराधना की है। उसमें जो आराधना नहीं हुई हो, वह मेरा पाप मिथ्या हो अर्थात् नष्ट हो । (नोट: मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाण पारने के लिए यह सूत्र कंठस्थ करना अत्यन्त आवश्यक है ।) १२ चउविहार पच्चक्खाण सूत्र अर्थ सहित दिवस चरिमं पच्चक्खाइ (पच्चक्खामि ) तिविहंपि आहारं असणं, खाइमं, साइमं, अन्नत्थाण-भोगेण, सहसा गारेणं, महत्तरा-गारेणं, सव्वसमाहि वत्तियागारेणं वोसिरइ (वोसिरामि) अनाभोग, सहसात्कार, महत्तराकार तथा सर्वसमाधिप्रत्याकार पूर्वक त्याग करता है (करता हूँ ) । (नोट : आयंबिल-एकासणा- नीवि या दूसरे बियासणा वाले आराधक सूर्यास्त से पहले तिविहार का पच्चक्खाण करने वाले भाग्यशालियों को यह पाणाहार- पच्चक्खाण करना चाहिए ।) प्रकार के आहार का अर्थात् अशन, पान, खादिम और स्वादिम का अना-भोग, सहसात्कार, महत्तराकार, सर्वसमाधिप्रत्याकार पूर्वक त्याग करता है (करता हूँ) । (नोट : ठाम चउविहार आयंबिल नीवि - एकासा तथा दूसरे बियासणावाले, तथा छूटेमुँहवाले चारों आहार के त्यागवाले सूर्यास्त के आसपास चारों आहार छोड़नेवाले यह प्रत्याख्यान करें ।) १३ तिविहार पच्चक्खाण सूत्र अर्थ सहित अर्थ : दिन के शेष भाग से संपूर्ण रात्रि-पर्यंत पच्चक्खाण करता है (करता हूँ)। उसमें तीनों प्रकार के आहार अर्थात् अशन, खादिम और स्वादिम का अना-भोग, सहसात्कार, महत्तराकार, सर्वसमाधिप्रत्याकार पूर्वक त्याग करता है ( करता हूँ) । (नोंध: आयंबिल - नीवि - एकासणा तथा दूसरा बीयासणा करके उठते समय तथा छूटेमुहवाले रात्रि दरम्यान पानी पीने की छूट रखनेवाले को यह पच्चक्खाण अवश्य करना चाहिए ।) १४ दुविहार पच्चक्खाण सूत्र अर्थ सहित दिवस- चरिमं पच्चक्खाइ ( पच्चक्खामि ) दुविहं पि आहारं असणं, खाइमं, अन्नत्थणा-भोगेणं, सहसा-गारेणं महत्तरा-गारेणं, सव्व-समाहि-वत्तियागारेणं वोसिरइ (वोसिरामि ) ॥ अर्थ : दिन के शेष भाग से संपूर्ण रात्रि-पर्यंत पच्चक्खाण करता है ( करता हूँ)। उसमें दो प्रकार के आहार अर्थात अशन और For Private - का अनाभोग, सहसात्कार, महत्तराकार, सर्वसमाधिप्रत्याकारपूर्वक त्याग करता हैं (करता हूँ) । (नोट : पूज्य गुरु भगवंत की अनुज्ञा प्राप्त करने के बाद यह पच्चकखाण लेनेवाले रात्रि दौरान समाधि में स्थिर रहने हेतु औषध और पानी दुःखार्त्त हृदय से ले सकते हैं ।) www.jainelit
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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