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________________ ५.तिविहार-उपवास पच्चक्खाण सूत्र अर्थ सहित सूरे उग्गए (चोथ-अब्भत्तट्ट) अब्भत्तटुं पच्चक्खाई। अर्थ : सूर्योदय से अगले दिन के सूर्योदय तक के उपवास का (पच्चकखामि) तिविहंपि आहारं असणं, पाणं खाईमं, पच्चक्खाण (अगले दिन तथा पारणा के दिन एकासणा करनेवाले को साईमं अन्नत्थणा-भोगेम्णं, सहसागारेणं, पारिट्ठा-चौथ-अब्भत्तटकरना) करता है(करता है), उसमें तीन प्रकारके आहार वणियारेणं महत्तरागारेणं, सव्व-समाहि-वत्तियागारेणं का अर्थात असन, खादिम और स्वादिम का अनाभोग, सहसात्कार, महत्तरागारेणं, सव्व-समाहि-वत्तियागारेणं पाणहार पारिष्ठापनिकाकार, महत्तराकार तथा सर्व-समाधि-प्रत्याकार पूर्वक पोरिसिं, साड्डपोरिसिं सूरे उग्गए पुरिमटुं, अवड्ढे मुट्ठिसहिअं करता है (करता हूँ)। उसमें पानी का आहार एक पहर ( पोरिसि)/डेढ़ पच्चखाई (पच्चखामि) अन्नत्थणाबोगेणं, साहवयणेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामो हेणं, साहुवयणेणं, पहर(साढ पोरिसि)/दो पहर (पुरिमड्ड)/तीन पहर(अवड्ड) मुट्ठिसहित महत्तरागारेणं सव्व-समाहि-वत्तियागारेणं,पाणस्स लेवेण पच्चक्खाण का अनाभोग, सहसात्कार, प्रच्छन्नकाल, दिग्मोह, वा अलेवेण वा, अच्छेण वा, बहलेवेण वा. ससित्थेण वा साधुवचन, महत्तराकार तथा सर्वसमाधिप्रत्याकार पूर्वक त्याग करता है असित्येण वा अलेवेण वा, अच्छेण वा, बहलेवेण वा, (करता हू)।पानी का (आगार)लेप, अलेप, अच्छ, बहलेप,ससिक्थ ससित्थेण वा असित्थेण वा वोरिसई (वोसिरामि)॥ तथा असिक्थ पूर्वक त्याग करता है( करता हूँ। ६.चउविहार-उपवास पच्चक्खाण सूत्र अर्थ सहित सूरे उग्गए (चोथ-अब्भत्तटुं) अब्भत्तटुं पच्चक्खाई| एकासणा/आयंबिल करनेवाले को चौथ-अब्भत्तट्ट कहना चाहिए) (पच्चकखामि) चउव्विहं पि आहारं असणं, पाणं, करता है (करता हूँ), उसमें चारों प्रकार के आहार का अर्थात् असन, खाईमं, साईमं, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पान, खादिम और स्वादिम का अनाभोग, सहसात्कार, पारिद्वावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्व-समाहि-पारिष्ठापनिकाकार, महत्तराकार तथा सर्व-समाधि-प्रत्याकार पूर्वक वत्तियागारेणं वोसिरई (वोसिरामि) करता है (करता हू)। अर्थ : सूर्योदय से अगले दिन के सूर्योदय तक के (चौविहार-उपवास नहीं तोड़ना पड़ता है. सन्ध्याकाल में उपवास का पच्चक्खाण (उपवास के अगले दिन प्रतिक्रमण-देवदर्शन करते समय स्मरण हेतु दूसरी बार पच्चक्खाण एकासणा/ आयंबिल उपवास के पारणा के दिन भी लेने की विधिप्रचलित है। यदि भूल जाए तो दोष नहीं लगता है।) ७. छट्ठ-अट्ठम-आदि तिविहार उपवास पच्चक्खाण सूत्र अर्थ सहित सूरे उग्गए छट्ठभत्तं (बे उपवास)/ अट्ठमभत्तं(त्रण दिन के सूर्योदय तक सात उपवास/नौवें दिन के सूर्योदय तक आठ उपवास) / दसमभत्तं (चार उपवास) / द्वादशभत्तं (पांच उपवास (एक-एक दिन बढ़ाते हुए १६ उपवास तक एक साथ उपवास)/चतुर्दशभत्तं (छह उपवास)/ षोडश भत्तं (सात पच्चक्खाण लिया जा सकता है।) का पच्चक्खाण करता है उपवास) / अष्टादश भत्तं (आठ उपवास) / (करता ह.)। उसमें तीन प्रकार के आहार अर्थात् अशन, खादिम पच्चक्खाइ( पच्चक्खामि) तिविहंपि आहारं असणं खाइमं, तथा स्वादिम का अनाभोग, सहसात्कार, पारिष्ठापनिकाकार, साइमं, अन्नत्थणाभोगेणं सहसाभोगारेणं, पारिट्ठा- महत्तराकार तथा सर्व-समाधि-प्रत्याकार पूर्वक करता है (करता हूँ वणियागारेणं महत्तरा-गारेणं, सव्व-समाहि-वत्तियागारेणं, ।), उसमें पानी का आहार एक प्रहर/डेढ प्रहर/दो प्रहर/तीन प्रहर पाणहार पोरिसिं, साढपोरिसिं सूरे उग्गए पुरिमा, अवहूं | मुट्ठिसहित प्रत्याख्यान का अनाभोग, सहसात्कार, प्रच्छन्नकाल, मुट्ठिसहिअं पच्क्खाइ( पच्चक्खामि) अन्नत्थाणाभोगेणं, दिग्मोह, साधुवचन, महत्तराकार तथा सर्वसमाधिप्रत्याकारपूर्वक सहसागारेणं, पच्छन्न-कालेणं, दिसामोहेण, साहुवयणेणं, त्याग करता है करता हूँ।)। अचित्त पानी का (आगार) लेप, महत्तरागारेणं, सव्व समाहि-वत्तियागारेणं, पाणस्स लेवेण अलेप, अच्छ, बहुलेप, ससिक्थ तथा असिक्थ पूर्वक त्याग करता है वा,अलेवेण वा, बहलेवेण वा,ससित्थेण वा,असित्थेण वा, (करता हू।)। वोसिरह( वोसिरामि)॥ (नोट: एक साथ एक से अधिक उपवास पच्चक्खाण लेने के ___अर्थ : सूर्योदय से लेकर तीसरे दिन सूर्योदय तक दो बाद दूसरे दिन पानी पीने से पहले 'पाणाहार पोरिसिं से वोसिरामि' उपवास/चौथे दिन के सूर्योदय तक तीन उपवास/पाचवें दिन तक का पच्चक्खाण अवश्य लेना चाहिए। यह पच्चक्खाण पारने के सूर्योदय तक चार उपवास/छठे दिन के सूर्योदय तक पाच का सूत्र एक उपवास में बतलाए गए सूत्र के अनुसार है। उसमें उपवास/सातवें दिन के सूर्योदय तक छहः उपवास/आठवें अब्भत्तटुंके बदले जितने उपवास किए हों वह बोलना जरूरी है। देशावगासिक पच्चक्खाण सूत्र अर्थ सहित देसावगासियं उवभोगं, परिभोगं पच्चक्खाइ (पच्चक्खामि) (नोटः सचित्तदव्वविगई.... इत्यादि १४ नियमों की धारणा अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्व-समाहि- करनेवाले सुबह-शाम यहपच्चक्खाण अवश्य लें) वत्तियागारेणं वोसिरह ( वोसिरामि)। lain Education Intematon १०९ ................... te & Personal Use Only
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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