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भद्रबाहुसंहिता
उपर जोवाथी मालुम पडशे के छंदोभंगनो दोष लगभग दरेक अध्यायमा छे. १५६४ श्लोकोमा १४७ श्लोको छंदनी दृष्टिए खामी वाळा होय ए कोई नानी सुनी बाबत न कहेवाय.
व्याकरणदोष नीचे जणावेल श्लोकोमा व्याकरणदोष छे.
३, ११, २७,५२, ६५, ७; १५. १०; २०. १२, ७. १३, १५८. १४; १३३. १५; ९१, ११०, १३०, १३७. २३, ५. २४; ३७. २५, १९, २२, ३९, ४१. २६, २५, ७०.
१५६४ श्लोकोमा एकवीस श्लोको व्याकरणदोषथी दूषित छे.. __ आ बन्ने दोषो भ. सं. वा. सं. करता अनेक गुणी उतरती छे अने ए भद्रबाहुए लखेली नथी एवा प्रकारना मारा निर्णयने विशेष पुष्ट करे छे. चतुर्दशपूर्वधारी भद्रबाहुए संस्कृतमा काई लख्यु होवानो उल्लेख मळतो नथी तेम ज नियुक्तिकार भद्गबाहुए पण संस्कृतमा कांई लख्यु होवार्नु इतिहासमां नौधायुं नथी. आ बाबत पण, प्रस्तुत भ. सं. संस्कृता लखायेली छे ए कारणे, ए भद्रबाहकर्तृक न होवी जोईए एवा मारा निर्णयने सुसमर्थित करे छे. विक्रमीय पंदरमी सदी पछी कोई साधारण बुद्धिसंपत्ति धरावनार माणसे एने रची काढी भद्बाहुने नामे चडावी साहित्यिक अने ऐतिहासिक अनेक घोटाळामा एकनो उमेरो कर्यो छे. आ उपरथी एम समजाववानो मारो प्रयास जराय नथी के जैनोमां ज्योतिष् अने खगोळ विषयक ज्ञान तेमज ग्रंथो नो'ता. आगळ में कडं छे तेम तात्पर्य ए छे के भ. सं. नियुक्तिकार भद्रबाहुए जरूर लखेली होवी जोईए परंतु ए भ. सं. ते प्रस्तुत भ. सं. नहि परंतु कोई अनेरी अने अपूर्व होवी जोईए जे कमनसीबे हाल अनुपलब्ध छे.
ग्रंथ संपादनमां उपयोगमां लीधेली प्रतिओनो परिचय A:-आ प्रति पुनाना भांडारकर ओरीएन्टल रीसर्च ईन्स्टीट्यूटमा संग्रहाएल प्रतिओना संग्रहाथी मेळववामां आवी हती. तेनो नंबर ८२४।१८९५-१९०२ छे. लिपिबद्ध थयानो संवत् तेने छेडे १५०४ नोध्यो छे. तेनी पृष्ठ संख्या ४५ नी छे. प्रथम पृष्ठ सिवायना बधा पृष्ठो बन्ने बाजुए लखेला छे. दरेक बाजुमां लगभग पंदर पंक्तिओ छे अने दरेक पंक्तिमा लगभग आडनीस थी बेंतालीस अक्षरो समाववामां आव्या छे. पृष्टनी दरेक बाजुए, उपर, नीचे तथा जमणा अने डावा हाथना भाग उपर एम चारेय भागमा लगभग .९ इंचनो हांसियो राखवामां आव्यो छे. प्रतिनी लंबाई, पहोळाई ९.८४४.२ इंच छे. पृष्टनी दरेक बाजुना मध्य भागमा अष्टकोणर्नु नानु चिह्न राखवामां आव्यु छे. प्रतिनी शरुआत "ॐ नमः सर्वज्ञाय" अने तेनो अंत “इति नैपँथे भद्रबाहु के निमित्ते संहिते स्वप्नाध्यायः षड्विंशोऽध्यायः समाप्तः॥" आ प्रमाणे थाय छे. आ प्रतिने जे राता वस्त्रमा लपेटवामां आवी छे अने तेना उपर जे नोंध करवामां आवी छे ते नोंध उपरथी प्रतिलेखन संवत् १५६४ जणाय छे. परंतु ते नोंध भूल वाळी छे कारण के प्रतिने अंते ग्रंथाग्रं १५६४ नोंधेल छे अने लेखन संवत् तो चोक्खो १५०४ लख्यो छे. आ बे आंकडामां नोंध करनारे उतावळथी भूल करी नाखी छे. चैत्र सुदि पांचम अने भौमवारे प्रतिलेखन पूरू करवामां आव्युं हतुं. आंबा नामना माणसे प्रति लखी अने साह वाच्छाए प्रति लखावी एवो चोक्खो उल्लेख आ प्रतिनी प्रांते छे. प्रतिलेखन सुंदर थयु छे. अक्षरो सुवाच्य छे. घणे स्थळे ज्यां अक्षरो छूटी गया छे त्यां......... आवी रीते ते बाबत दर्शाववामां आवी छे. प्रतिनी हालत सारी छे. क्वचित् क्वचित् प्रतिमां गमे त्यां राती साहीथी पण लखवामां आव्युं छे. कोई कोई पृष्ठमां एक पंक्ति काळी साहीथी अने त्यार पछीनी बीजी राती साहीथी अने वळी पाछी त्रीजी काळी साहीथी आ प्रमाणे पंक्तिओ लखवामां आवी छे. प्रति शुद्ध होई ग्रंथ संपादनमा मुख्य आधार आ प्रतिनो लेवामां आव्यो छे.
B:-आ प्रति मुक्ताबाई ज्ञानमंदिर - डभोईमांथी मेळववामां आवी हती. तेमा बन्ने बाजुए लखेल-पहेला तथा छेला सिवायना-७६ पृष्ठ छे. पृष्ठनी दरेक बाजु उपर लगभग बार जेटली पंक्तिओ छे अने दरेक पंक्तिमा लगभग ओगणत्रीस के त्रीस जेटला अक्षरो समावेल छे. प्रतिनी लंबाई पहोळाई ११.२४५.८ इंच छे अने उपर, नीचे तथा जमणा अने डाबा हाथना भाग उपर अनुक्रमे .९ इंचनो तथा १.१ इंचनो हांसियो राखवामां आवेल छे.
प्रतिनी शरुआत “ॐ नमः सिद्धेभ्यः॥ श्री भद्रबाहवे नमः॥" अने तेनो अंत “इति निर्ग्रथे भद्रबाहुके निमित्त स्वप्नाध्यायः षड्विंशतितमोध्यायः समाप्तम् ॥" आ प्रमाणे छे. प्रतिलेखन संवत् १७११ वर्षे पोष वदि बीज अने शुक्रवारे अंबावतीगढ दुर्गे महाराजाधिराज श्री जैसंघ विजै राज्ये पूरूं करवामां आव्यं हतं. छेवटे लषितं मथे नसौ राम ॥ छ ॥ आवा शब्दो छे. प्रतिलेखन साधारण गणाय. अक्षरो वांचवामा मुइकेली नडे तेम नथी. कोई कोई स्थळे ज्यां अक्षरो छूटी गया छे त्यां......आवी रीते ते हकीकत दर्शाववामां आवी छे. पण एम जूज स्थळे ज बनवा पाम्यं छे. प्रतिनी हालत ठीक छे. कोई पृष्ठ फाट्यु-टूट्यूं नथी. आप्रतिर्नु भाषा शैथिल्य घj छे. 'समुदीर्ण' शब्द बताववो होय तो 'समुदीरण' थी अने 'शुद्धि'
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