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प्रस्तावना
१९
जळनो प्रभु शुक्र छे अने सस्यनो गुरु छे एम कही ए अधिष्ठायक ग्रहो हणाय तो ते ते जळ-सस्यादिक वस्तुनो नाश थाय एम जेम भ. सं. ( २४, ३५-३७ ) मां कह्युं छे तेम, तथा वात अने कफनो स्वामी गुरु, चंद्र, अने शुक्र छे तथा पित्तनो भौम छे तेथी ए प्रहोनो घात थाय तो एटले के हणाय तो ते ते धातुओनो प्रकोप थाय ए जेवी रीते भ. सं. ( २४; ३९ ) मां कह्युं छे तेवी रीते अने शुक्र तथा चंद्र स्त्री ग्रहो छे इत्यादि कहीने ते प्रहो ग्रहयुद्धमां हणाय तो स्त्री-पुरुषादिकने नुकसान करनार निवडे एम जेम भ. सं. ( २४; ४२ ) मां कयुं छे तेम वा. सं ना आ अध्यायमा किंचिन्मात्र निर्देश नथी करायो. तेथी आ बाबतोना निरूपणने आपणे भ. सं. नी विलक्षणतानी सूचक गणवी जोईए अने एनी ए विशिष्टताने लई एनुं मूल्य ए रीते अने एटला पूरतुं वा. सं. करतां चडे छे.
गुरु, शनि, अने बुध ए त्रण नागर ग्रहो अने केतु, भौम, चंद्र, राहु, अने शुक्र यायी ग्रहो छे ते भ. सं. ( २४; २ ) मनुं कथन अने वा. सं. ( १७; ६-७ ) मांना कथन वच्चे सादृश्य छे. नागर ग्रहना घातथी नागरोने भय, अने यायी ग्रहना घातथी यायीओने भय ए भ. सं. ( २४; ७ ) ना सिद्धांत अने वा. सं. ( १७; ८ ) ना सिद्धांत बच्चे तात्त्विक साम्य छे. ग्रहयुद्धमां दक्षिण दिशानो, हस्ख, विवर्ण, रूक्ष, श्याम, अने विरश्मि ग्रह हणायेलो समजवो अने स्थूल, स्निग्ध, सुवर्ण अने सुरश्मि ग्रह ग्रहयुद्धमां जीतायेलो समजवो एवा भ. सं ( २४; ८-९ ) ना कथन साथै वा. सं ( १७; ९-१० ) ना कथननी सुसंगति छे. आ रीते, ग्रहयुद्ध पूरता बन्ने संहिता ग्रंथोमां समान तत्त्वो पण छे.
सारांश
भ. संनी अने वा. सं. नी आ तुलना पछी भ. सं करतां वा. सं. आभ्यंतर अने बाह्य बन्ने दृष्टिए चडियाती छे एवी चोकस छाप मारा मन उपर पडी छे ए तो मारे कहेवुं ज जोइए. वस्तुनुं संपूर्ण छतां संक्षिप्त, सचोट, विशद, अने असंदिग्ध वर्णन तथा प्रतिपादन शैली, भाषाशुद्धि, अने छंदवैविध्यनी दृष्टिए भ. सं. वा. सं. साथे टक्कर झीली शके तेम नथी. भ. सं. मां एकनी एक वातनुं पुनरुच्चारण, अस्पष्टता, कोई स्थळे विशेष विस्तार तो कोई स्थळे संदिग्ध बनीने पण करेलो संक्षेप, वस्तुनी वेंचणीमां शैथिल्य, अध्यायोनी अव्यवस्था, भाषादोष, छंदोभंग अने निस्तेज निरुपण - आ दोषो भ. सं. ने वा. सं. आगळ झांखी बनावे छे.
छंद अने भाषा
भ. सं. ना जे जे दूषणो हता ते ते में आगळ प्रसंगोपात जणाव्या छे. ए बधा दूषणो करतां तेनुं छंद विषयक अने भाषा विषयक दूषण प्रमाणमां मोटुं छे. परंपरा पार्थक्यना दृष्टिबिंदुथी तेना बीजा दूषणो कांईक अंशे समजावी शकाय तेवा छे अने तेथी ते क्षंतव्य पण छे. परंतु छंद अने भाषा विषयक दूषण नयुं दूषण ज छे अने तेथी ते अक्षतव्य छे. में आगळ जणान्युं छे तेम ज्योतिष, मंत्र, तंत्र, भेषजादि उपरना ग्रंथोमां भाषाशैथिल्य अने छंदोभंग जोवामां आवे छे कारण के ते ग्रंथो मुख्यत्वे ग्रंथनी वस्तुने ज ध्यानमा राखनारा होय छे एटले ए प्रंथोनी रचना वखते छंद अने व्याकरणना नियमो स्वयं सचवाई जता होय तो एना जेवुं कांई इष्ट नथी परंतु न सचवाता होय तो एने वस्तुना भोगे साचबानो कोई विशिष्ट प्रयत्न सेववामां आवतो नथी. आ सत्य घटना छे अने ए रीते भ. सं. ना छंदोदोष तथा भाषादोषोने दोषोनी कोटिमां नहि खपाववानो आपणने अधिकार छे. परंतु ए तो त्यारे ज उचित गणाय ज्यारे ए दोषो मोटी संख्यामा न होय. परंतु अर्हीीँयां तो भ. सं. ना उपर्युक्त बन्ने दोषो प्रमाणमां घणा ज छे तेथी ए दोषो ज छे अने ए रीते ए अक्षतव्य छेएम मारुं मानवुं छे. ए दोषोने संस्कारवा सहेला हता परंतु एम करवा जतां मारे आखा ग्रंथना कलेवरने बदलवुं पडत जे संपादकीय दृष्टिए वधारे पडतुं कहेवाय. एटले में ए दोषो एमना एम रहेवा दीधा छे. परंतु अभ्यासीने एम लागे के ए दोषो मारी दृष्टिमां आव्या ज नथी तेथी ए बधा दोषो अध्याय वार अने श्लोक वार में नीचे प्रमाणे बताव्या छे जेथी ए दोषो मारी नजरमां नथी आव्या एवो आक्षेप करवानुं अभ्यासीने न प्राप्त थाय. अलबत्त, जे दोषो मने बहु मोटा लाग्या तेने मैं ( ) आवा कौंसमां पाठ सूचवी सुधारवा, संस्कारवा यत्न कर्यो छे.
छंदोभंग
१, ८, १३.२; १, ७.३; १२, १९, २८, ४९, ५५, ५७, ५९, ६०, ६५, ६६.४, २, १७, २१, २६. ५, ६, ८, १९. ६, ८, १३, १४, १६, १८. ७ २, ३, ४, ५, ६, १४, २०, २३, २४. ८ ५, ७, १०, ११, १२, १५, १९. ९; ४, ११, २३, २७, २९, ४२. १०, ४, ५, ६, ९, १३, २५, २७, २९, ३१, ३२, ३५, ३९, ५२, ५३. ११, ४, ५, ६, ७, ९, १४, १५, १७, १९, २७, २९, ३०, ३१.१२, २, ९, १६, १७, १९, २१.१३; २८, ४५, ५१, ५२, ८३, ८९, १२३, १४२, १४६, १४९, १७७.१४, ८, १४, २५, ३२, ४६, ४८, ५१, ५८, ६१, ६४, ८५, ११४, ११५, १६१, १६९.१५; १२, २९, ६२, ६८, ७९, ८७, ८८, ८९, ९९, ११६, १२७, १२९, १३२, १४२, १५०, १५७, १६५, १८३, १८४, १९३, २०६.१९; १५, २७, २९.२० ३२. २१; ४, २५.२३३ २, ३६, ४१.२४; १३.२५, ८, १८, २४.२६, ९, १४, ३०, ४५, ५९, ६०.
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