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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
चतुर्थ अध्ययन [४६
जेऽसंखया तुच्छ परप्पवाई, ते पिज्ज-दोसाणुगया परज्झा । एए 'अहम्मे' ति दुगुंछमाणो, कंखे गुणे जाव सरीर-भेओ ॥१३॥
-त्ति बेमि । जो लोग कृत्रिम रूप से संस्कारी हैं, वे जीवन को सांधने योग्य मानते हैं। ऐसे लोग तुच्छ हैं, पर-प्रवादी हैं (दूसरों के निन्दक हैं), रागद्वेष से ग्रस्त हैं, परवश (वासनाओं के वशीभूत) हैं। इन्हें अधर्मी जानकर साधक इनसे दूर रहे और देह-त्याग (आयु के अन्तिम क्षणों) तक सद्गुणों (अप्रमत्तता) की कांक्षा-आराधना करता रहे ॥१३॥
-ऐसा मैं कहता हूँ। __ Those, who are ostantate purified, consider the life reparable. Such persons are mean, false, accusers of others, victims of passions; knowing those irreligious and impious, the ascetic should remain far from them and till the end of life regularly practise the carefulness and virtues. (13)
-Such I speak.
विशेष स्पष्टीकरण भारण्ड पक्षी पौराणिक युग का एक विराटकाय पक्षी माना गया है। पंचतंत्र आदि में उसके दो ग्रीवा और एक पेट बताया गया है-"एकोदराः पृथग् ग्रीवा"। कल्पसूत्र की किरणावली टीका में भी उसके दो मुख और दो जिह्वा का उल्लेख है। इसका अर्थ है कि दो ग्रीवा एवं दो मुख होने से उसके आँख, कान आदि सब दो-दो हैं। जब वह एक ग्रीवा से भोजन करता है, तो दूसरी ग्रीवा को ऊपर किये हुये आँखों से देखता रहता है कि कोई मुझ पर आक्रमण तो नहीं करता है। इस दृष्टि से साधक को अप्रमत्तता के लिये भारण्ड पक्षी की उपमा दी जाती है। कल्पसूत्र में भगवान महावीर को भी अप्रमत्तता एवं सतत जागरूकता के लिये भारंड पक्षी की उपमा दी है। उक्त पक्षी का वर्णन वसदेवहिण्डी आदि अनेक प्राचीन जैन-कथा-ग्रन्थों में भी आता है।
Salient Elucidations
Bhāranda is supposed to be a huge bird of bygone ( futa) ages. Pancatatntra says that it has two necks and one stomach and Kiranävali commentary of Kalpasūtra also mentions about its two mouths and two tongues.
It means that being two necks and two mouths on opposite sides; it had ear, nose, eyes etc., on both the opposite sides.
When he eats with one mouth (neck) then uprises the other neck and watches with the eyes lest no one attacks me.
By this point of view, the practitioner is resembled with Bharanda for carefulness. In Kalpasūtra, for carefulness and utter alertness the resemblance of Bhāranda bird given even to Bhagawāna Mahāvira.
The description of this bird we also get in ancient epical works like Vasudevahindi etc.
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