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________________ ४७] पंचम अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र - ॥ पंचम अध्ययन : अकाम-मरणीय ॥ पूर्वालोक प्रस्तुत अध्ययन का नाम अकाम मरणीय है और नियुक्ति में इसका दूसरा नाम मरणविभक्ति भी दिया गया है। इससे पूर्व चतुर्थ अध्ययन में जीवन को असंस्कृत (irreparable) बताया था और प्रस्तुत अध्ययन में मरण का वर्णन हुआ है। यह सत्य है कि प्राणी मात्र का मरण अवश्यम्भावी है। प्रत्येक प्राणी को मृत्यु का ग्रास अवश्य बनना है। संसार का आदि प्रश्न है-मृत्यु क्या है? क्या आत्मा मरती है ? नहीं, वह तो अजर-अमर अविनाशी है, उसके मरण का तो प्रश्न ही नहीं है। तब क्या शरीर मरता है ? नहीं, वह भी मूल पुद्गल रूप से तो ज्यों का त्यों रहता है। प्रश्न फिर भी ज्यों का त्यों है, मृत्यु क्या है ? समाधान है-आयुकर्म के समाप्त हो जाने पर आत्मा का शरीर से निकल जाना, आत्मा और देह का विछोह ही मृत्यु है। यदि ऐसा है तो क्या अन्तर पड़ा? प्रत्येक प्राणी मृत्यु से भयभीत क्यों रहता है ? भय अनजानी वस्तु से होता है। सामान्य मानव मृत्यु को नहीं जानता, इसीलिए भयभीत रहता है; किन्तु जो मृत्यु को जानता है, वह भयभीत नहीं होता, स्वेच्छामरण स्वीकार करता है। इस तथ्य को प्रस्तुत अध्ययन में मरण के दो विभाग अकाममरण और सकाममरण (Non-Voluntary and Voluntary death) करके समझाया गया है। सकाममरण में साधक मृत्यु का वीर योद्धा के समान साहसपूर्वक सामना करता है, अतिथि के समान स्वागत करता है और मृत्यु को स्वेच्छापूर्वक स्वीकार करता है, मृत्यु के समय वह शांत और प्रसन्नचित्त रहता है। उसका मरण सकाममरण अथवा पण्डितमरण कहा गया है। इसके विपरीत अकाममरण जिसे बालमरण कहा गया है, प्रत्येक प्राणी का अनादि काल से होता रहा है और होता रहेगा। __ अकाममरण अथवा बालमरण १२ प्रकार का है। इसमें क्रोध आदि कषायों तथा भय की प्रमुखता रहती है। जो प्राणी-विशेष रूप से मनुष्य सद्धर्माचरण नहीं करते हैं, गतानुगतिक लोक का अनुसरण करते हैं, वे मृत्यु के समय भयाक्रान्त होते हैं, दुर्गति में गिरते हैं, संसार बढ़ाते हैं। इसके विपरीत सकाममरण से मरने वाले संसार घटाते हैं। इस तथ्य को दृष्टान्तों और रूपकों द्वारा प्रस्तुत अध्ययन में पुष्ट किया गया है। प्रस्तुत अध्ययन में ३२ गाथाएँ हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002912
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year
Total Pages652
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_uttaradhyayan
File Size21 MB
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