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तर, सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
तृतीय अध्ययन [४०
चउरंगं दुल्लहं नच्चा, संजमं पडिवज्जिया । तवसा धुयकम्मंसे, सिद्धे हवइ सासए ॥२०॥
-त्ति बेमि । इन चार अंगों को दुर्लभ जानकर तथा सर्वसावधविरत चारित्र रूप संयम को स्वीकार करके तपस्या द्वारा सर्व कर्मांशों की निर्जरा करके साधक शाश्वत सिद्ध हो जाता है ॥२०॥
-ऐसा मैं कहता हूँ। Believing these four essentials difficult to attain, accepting the restrain, devoid of all sinfi activities, and shaken off the remnants of karmas he becomes a perfect-liberated soul. (20)
-Such I Speak
विशेष स्पष्टीकरण गाथा १५-"पूर्व" शब्द जैन-परम्परा में एक संख्या विशेष का वाचक है। ८४ लाख को ८४ लाख से गुणा करने पर जो संख्या होती है, वह पूर्व है। अर्थात् ७० लाख छप्पन हजार करोड़ (७०,५६000,000,0000) वर्षों को पूर्व कहते हैं।
गाथा १७-"कामस्कन्ध" का अर्थ है-काम अर्थात् मनोज्ञ शब्द-रूपादि के हेतुभूत पुद्गलों का स्कन्ध-समूह। भोग-विलास के मनोज्ञ साधन। (सुखबोधा) ___"दास पौरूष" में आये दास का अर्थ है-"वह गुलाम, जो खरीदा हुआ है, जो क्रेता स्वामी की संपत्ति समझा जाता है।" दास और कर्मकर अर्थात् नौकर में यही अन्तर है कि दास खरीदा हुआ होने से स्वामी की सम्पत्ति है और कर्मकर वेतन लेकर अमुक समय तक काम करता है, फिर छुट्टी।
Salient Elucidations Gathā 15- The world pūrva used in Jain tradition denotes a special numerical. The number got by multiply 84 lakh by 84 lakh is a pürva. i. e., 70 lakh 56 thousand crore (70,56,000,00,00,000) years makes a pūrva.
Gathā 17-Kama-skandha mean-Kama-heart pleasing words, colours, forms etc., that are caused by the accumulation of material macro particles the pleasing or favourable means of physical and sensual desires. (Sukhabodhā)
'Slave' (ETH) is the person who is purchased by paying his cost. His purchaser becomes his owner. Slave has no freedom.
The difference between servant (44+T) and slave lies in the point that being purchased slave is the wealth of his owner, while servant gets the salary of his working time, and after that he is free.
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