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३१] द्वितीय अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
२०-प्रज्ञा-परीषह
'से नूणं मए पुव्वं, कम्माणाणफला कडा । जेणाहं नाभिजाणामि, पुट्ठो केणइ कण्हुई ॥४०॥ 'अह पच्छा उइज्जन्ति, कम्माणाणफला कडा ।'
एवमस्सासि अप्पाणं, नच्चा कम्मविवागयं ॥४१॥ मैंने निश्चय ही पूर्वजन्म में ज्ञानावरणीय (अज्ञान रूप फल देने वाले) कर्म किये हैं, ऐसे कर्मों का बन्ध किया है। तभी तो किसी के द्वारा (जीवादि तत्वों के विषय में) कुछ भी पूछे जाने पर मैं कुछ उत्तर नहीं दे पाता ॥४०॥ __ पूर्वकृत अज्ञान रूप फल देने वाले कर्मों (ज्ञानावरणीय-ज्ञान प्रतिबन्धक कर्म) का विपाक होता ही हैऐसा जान कर अपनी आत्मा को आश्वासित करे ॥४१॥ 20. Knowledge (Intelligence) Trouble
In the previous life or lives really I have accumulated knowledge-obscuring karmas. So I can not reply the question (relating soul, non-soul elements) put up before me by anybody. (40)
The fruition is but natural, of preceding knowledge obscuring karmas-believing this maxim, the monk should assure his own self (soul). (41) २१-अज्ञान-परीषह
'निरट्ठगम्मि विरओ, मेहुणाओ सुसंवुडो । जो सक्खं नाभिजाणामि, धम्म कल्लाण पावगं ॥४२॥' 'तवोवहाणमादाय, पडिम पडिवज्जओ ।
एवं पि विहरओ मे, छउमं न नियट्टई ॥४३॥' मुनि ऐसा चिन्तन न करे कि 'मैंने व्यर्थ ही मैथुन आदि इन्द्रिय विषयों और सांसारिक भोगों का त्याग किया; क्योंकि मैं (अभी तक) यह नहीं जान पाता कि धर्म कल्याणकारी (श्रेय) है या पापकारी है ॥४२॥ __ मैं तप-उपधान आदि का पालन करता हूँ, विशिष्ट प्रतिमाओं को धारण करके भी विचरण करता हूँ; फिर भी मेरे ज्ञानावरणीय आदि कर्मों का क्षय नहीं हुआ-साधक ऐसा भी निराशापूर्ण चिन्तन न करे ॥४३॥ 21. Ignorance Trouble
The monk should not think like this-'it is useless that I have desisted froin lust-the sensual pleasures, because until this day I could not know whether the religion (the religious rituals I adopted) is auspicious or vicious. (42)
The adept should not give place in his mind such desperate thoughts-though I observe austerities and meditation, practise chain-fast etc., still my knowledge obscuring karmas are not destructed (43) २२-दर्शन-परीषह
'नत्थि नूणं परे लोए, इड्डी वि तवस्सिणो । अदुवा वंचिओ मि' ति, इइ भिक्खू न चिन्तए ॥४४॥
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