________________
२७] द्वितीय अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
-
मुनि को स्त्री-पशु-नपुंसक की बाधा रहित अच्छा या बुरा-अनुकूल या प्रतिकूल जैसा भी स्थान मिल जाय, उसमें यह सोचकर रह ले कि एक रात में मेरा क्या बिगड़ जायेगा ॥२३॥ 11. Bed or Lodge Trouble
A mendicant who does penance and firm in self control will not be effected beyond measure by good or bad, high or low bed (shelter, place etc;) because he is strong enough to bear cold and warm, and having religious outlook, so he never infringes the code of a mendicant. But the ascetic having sinful attitude infringes the code specified for an ascetic. (22)
Getting shelter in vacant (without women, animal and eunuch) house, may it be favourable-disfavourable, good or bad. He may live there thinking-'I have to stay here for a night only, so it matters not. (23) १२-आक्रोश-परीषह
अक्कोसेज्ज परो भिक्खुं न तेसिं पडिसंजले । सरिसो होइ बालाणं, तम्हा भिक्खू न संजले ॥२४॥ सोच्चाणं फरुसा भासा, दारुणा गाम-कण्टगा ।
तुसिणीओ उवेहेज्जा, न ताओ मणसीकरे ॥२५॥ यदि कोई भिक्षु को दुर्वचन कहे तो भी भिक्षु उस पर आक्रोश न करे। क्रोधी तो मूर्ख अज्ञानियों के समान होता है-यह सोचकर कभी क्रोध न करे ॥२४॥
शूल के समान कर्णकटु असत्य, कठोर और कानों में कांटे की तरह चुभने वाला अप्रिय शब्द सुनकर मुनि मौन रहकर उनकी उपेक्षा कर दे। उनके प्रति मन में भी क्रोध न करे ॥२५॥ 12. Abuse Trouble
If some one hurls abuse at a mendicant, still the mendicant should not be angry towards him. He (Mendicant) must think that an angry man is like a foolish. So he must not allow anger in his heart. (24) ___Hearing the thorm-like harsh, cruel, untruthful and piercing the ears words, monk should give no heed to them, become silent and should not allow the anger even in his mind. (25)
१३-वध-परीषह
हओ न संजले भिक्खू, मणं पि न पओसए । तितिक्खं परमं नच्चा भिक्खु-धम्मं विचिंतए ॥२६॥ समणं संजयं दन्तं हणेज्जा कोई कत्थई ।
'नत्थि जीवस्स नासु' त्ति, एवं पेहेज्ज संजए ॥२७॥ लाठी आदि से मारे-पीटे जाने पर भी भिक्षु क्रोध में संतप्त न हो, अपने मन को भी दूषित न करे, क्षमा को साधना का श्रेष्ठ अंग जानकर मुनि-धर्म का चिन्तन करे ॥२६॥ ___ संयमी और इन्द्रियविजयी साधु को यदि कोई व्यक्ति कहीं मारे-पीटे, प्रहार करे, घात करे तो भिक्षु यह विचार करे कि आत्मा का नाश तो होता ही नहीं ॥२७॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org