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२५] द्वितीय अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
७-अरति-परीषह
गामाणुगाम रीयन्तं, अणगारं अकिंचणं । अरई अणुप्पविसे, तं तितिक्खे परीसहं ॥१४॥ अरई पिट्ठओ किच्चा, विरए आय-रक्खिए ।
धम्मारामे निरारम्भे, उवसन्ते मुणी चरे ॥१५॥ ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए अनिकेत अकिंचन श्रमण के मन-मस्तिष्क में कभी संयम के प्रति अरति (अरुचि) उत्पन्न हो जाय तो उस परीषह को समभाव से सहे ॥१४॥
विषयों से विरक्त, आरम्भत्यागी, आत्मरक्षक मुनि अरति भाव को दूर कर धर्मरूपी उद्यान में स्थिर होकर उपशम भावों में रमण करे ॥१५॥ 7. Discontent trouble
Wandering from village to village, without money and shelter, the disgust for restrain may disturb his heart and head, but he should bear this trouble with the peace of mind. (14)
Disinclined to sensual pleasures, renouncer of sins, self protecting monk, getting rid of discontent feelings, remains in the garden of religion should indulge himself into tranquilthoughts (15) ८-स्त्री-परीषह
'संगो एस मणुस्साणं, जाओ लोगंमि इथिओ ।' जस्स एया परिन्नाया, सुकडं तस्स सामण्णं ॥१६॥ एवमादाय मेहावी, 'पंकभूया उ इथिओ' ।
नो ताहिं विणिहन्नेज्जा, चरेज्जऽत्तगवेसए ॥१७॥ जो साधु ऐसा जानता है कि संसार में पुरुष के लिए स्त्रियां बंधन का बहुत ही प्रबल कारण हैं (उनके प्रति विरक्त-बुद्धि से) उस साधु का श्रमणत्व सफल हो जाता है ॥१६॥
"स्त्रियाँ ब्रह्मचारी के लिए दल-दल के समान हैं' इस तथ्य को भली-भाँति जानकर मेधावी साधु उन (स्त्रियों) के द्वारा अपने संयम का घात न होने दे और सदा आत्मस्वरूप की गवेषणा करे ॥१७॥ 8. Women Trouble
The ascetic who is well aware of the fact the women are the strongest cause to bind a man; (with the disinclined mood about them-the women) his sageness becomes successful. (16)
Women are like a swamp for a celibate' knowing this fact fully the wise ascetic should not allow them (the women) to distort his restrain and always he eager to indulge in the inherent qualities of his self. (17) ९-चर्या-परीषह
एग एव चरे लाढे, अभिभूय परीसहे । गामे वा नगरे वावि, निगमे वा रायहाणिए ॥१८॥
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