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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
५- दंश - मशक - परीषह
पुट्ठो य दंस-मसएहिं समरेव महामुणी । नागो संगाम - सीसेवा, सूरो अभिहणे परं ॥ १० ॥ न संतसे न वारेज्जा, मणं पि न पओसए । उवे न हणे पाणे, भुंजन्ते मंस सोणियं ॥ ११ ॥
डांस-मच्छरों (चींटी आदि क्षुद्र तथा सूक्ष्म जंतुओं) का उपद्रव होने पर भी महामुनि अपने समभाव में स्थिर रहे। जिस प्रकार रणक्षेत्र में गजराज बाणों की परवाह नहीं करता हुआ शत्रुओं का विध्वंस करता है, उसी प्रकार महामुनि परीषहों पर विजय प्राप्त करके राग-द्वेष, कषाय, कर्म आदि आन्तरिक शत्रुओं का हनन करे ॥१०॥
द्वितीय अध्ययन [ २४
डांस-मच्छरों के परीषह पर विजय प्राप्त करने वाला मुनि उनके द्वारा दी जाने वाली पीड़ा से उद्विग्न न हो । न उन्हें हटाए, न उनके प्रति मन में द्वेष ही करे। यहाँ तक कि यदि वे उसका मांस काटें, रक्त पीवें तो भी उन्हें मारे नहीं, उनके प्रति उपेक्षाभाव रखे ॥११॥
(5) Drones' Trouble
Oppressed by the painful stings and biting of drones and insects the great monk remains equanimous. In the battle-field as the strong elephant, without caring about the fiercing arrows destroys the enemies; so the great monk conquering the troubles destroy the attachment, aversion, passions, karma etc., the inherent enemies, (10)
The victor of drones' trouble monk remains undisturbed by the agony of their stings. Neither scare nor drive them off, nor defile his mind. Even if they bite his flesh and suck his blood, he should not kill them, only become indifferent toward them. ( 11 )
६ - अचेल परीषह
'परिजुण्णेहि वत्थेहिं, होक्खामि त्ति अंचेलए' | अदुवा ' सचेलए होक्खं', इइ भिक्खू न चिन्तए ॥१२॥ 'एगयाऽचेलए हो, सचेले यावि एगया' । एयं धम्महियं नच्चा, नाणी नो परिदेवए ॥ १३ ॥
वस्त्रों के अधिक जीर्ण हो जाने-फट जाने से मैं अचेलक हो जाऊँगा अथवा नये वस्त्र मिल जाने से सचेलक (नये वस्त्रधारी) बन जाऊँगा - श्रमण इस प्रकार का विचार न करे ॥ १२ ॥
परिस्थितियों के कारण 'साधु कभी अचेलक भी होता है और कभी सचेलक भी होता है।' दोनों ही स्थितियों को धर्म के लिए हितकारी मानकर ज्ञानी श्रमण कभी आकुल-व्याकुल न हो, दुःख न करे ॥१३॥ 6. Nakedness Trouble
The sage should not entertain such thoughts 'My clothes being torn, I shall be soon naked' or 'by getting new cloths I will be the bearer of new clothes' (12)
Due to the circumstances, sometimes he is totally unclad and sometimes has a robe. Considering both the positions beneficial for religion (religious rituals) sage shold never feel sorrow. (13)
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