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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
प्रथम अध्ययन [१६
विशेष स्पष्टीकरण माया -संयोग का अर्थ आसक्तिमूलक सम्बन्ध है। वह बाह्य (परिवार तथा संपत्ति आदि) और आभ्यन्तर (विषय, कषाय आदि) के रूप में दो प्रकार का है। (सुखबोधा)
"अणगारस्स भिक्खुणो" में अनगार और भिक्षु दो शब्द हैं। अनगार का अर्थ है-अगार (गृह) से रहित-अर्थात् जो आहार या वसति आदि की प्राप्ति के लिये जाति, कुल आदि का परिचय देकर दूसरों को अपनी ओर आकृष्ट कर आत्मीय (स्वजन) नहीं बनाता है। (बृ. वृ. शान्त्याचार्य)
विनय का एक अर्थ आचार है, और दूसरा है नमन अर्थात् नम्रता।
मापा २-आज्ञा और निर्देश समानार्थक हैं। फिर भी चूर्णि के अनुसार आज्ञा का अर्थ होता है-“आगम का उपदेश" और निर्देश का अर्थ होता है-"आगम से अविरुद्ध गुरुवचन"। (बृ. वृ. शा.)
इंगित और आकार शरीर की चेष्टा-विभिन्न मुद्राओं के वाचक हैं। किसी कार्य के विधि या निषेध के लिये सिर हिलाना आदि सूक्ष्म चेष्टा इंगित है, और इधर-उधर दिशाओं को देखना, जमाई लेना, आसन बदलना आदि स्थूल चेष्टायें (आकार)
"संपन्ने" का अर्थ सम्पन्न (युक्त) भी है और संप्रज्ञ (जानने वाला) भी। वृहवृत्ति में दोनों अर्थ हैं। माया ५-चूर्णि के मतानुसार “कणकुण्डगं" के दो अर्थ हैं-चावलों की भूसी अथवा चावल मिश्रित भूसी।
गाथा ७-बुद्धपुत्त नियागढी-बुद्धपुत्र अर्थात् आचार्य का विनीत प्रीतिपात्र शिष्य, नियागट्ठी-निजकार्थी, आत्मार्थी, (सुखबोधा)
माया १०-चण्डालियं-इसमें चण्ड (क्रोध) और अलीक (असत्य) दो शब्द है (चूर्णि)। क्रोध के वशीभूत होकर असत्य भाषण करना, तथा क्रूर व्यवहार करना-चाण्डालिक कर्म माना जाता है। (वृहद् वृत्ति)
माया १२-"गलियस्स" का अर्थ है-अविनीत घोड़ा। "आकीर्ण" विनीत अश्व और बैल को कहते हैं। माथा १८-कृति का अर्थ-वन्दन है। जो वन्दन के योग्य हो, वह कृत्य अर्थात् गुरु एवं आचार्य आदि पूज्य व्यक्ति। .
माथा २६-"समर" का अर्थ-लोहार की शाला है, (चूर्णि)। लोहार की शाला तथा नाई की दुकान। एवं इसी प्रकार के साधारण निम्न स्थान (वृ. वृ.) "समर" का दूसरा अर्थ-युद्ध भूमि है। (वृ. वृ.)
गाथा ३५-"अप्पपाण" और "अप्पबीय" में 'अल्प" शब्द अभाववाची है। (बृहद्वृत्ति)। गाथा ४०-उपघात-का अर्थ है-आचार्य आदि को मानसिक क्लेश पहुँचाना, या किसी कार्य के लिये बाध्य करना (चर्णि) गाथा ४७-कर्मसंपदा के दो अर्थ हैं-साधुओं के द्वारा समाचरित, समाचारी और योगजन्य विभूतियां (लब्धिया) (वृ. वृ.)
ॐ
90888 388528380986888888888
Salient Elucidations Gathā 1-The word sanjogā which is translated in the text as worldly ties denotes the attachment. Externally the causes of attachment are-wealth, family members etc., and internal causes are-passions, sensual pleasures etc. (Sukhabodha)
In this couplet two words have been used Anagarassa Bhikkhuno. Here anagara stands for an adept who is homeless. He does not attract others by giving introuction of his clan, class, lineage, family etc., for getting food, lodging, etc. (Vrhad Vrtti-Santyācārya)
Vinaya (विनय) has two interpretations-(1) Conduct, and (2) Courtesy-modesty.
Gathā 2-Instruction (आज्ञा) and order (निर्देश) are synonyms. Still according to the Curni instruction is the precept of canonical scriptures (आगम का उपदेश) while order (निर्देश) denotes the words of the preacher which are uncontrary to scriptures (V. V, $)
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