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१५] प्रथम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
स पुज्जत्थे सुविणीयसंसए, मणोरुई चिट्ठई कम्म- संपया । तवोसमायारिसमाहिसंवुडे, महज्जुई पंच वयाइं पालिया ॥४७॥
ऐसे विनीत शिष्य के शास्त्रीय ज्ञान का संसार में समादर होता है। वह (शिष्य) साधु समस्त संशयों से रहित और समस्त कर्म सम्पदा ( साधुयोग्य कर्त्तव्य - साधु समाचारी) से युक्त हो जाता है। वह गुरु के मन को प्रियकारी होता है तथा तप के समाचरण एवं समाधि से युक्त रहता है। वह आस्रवों का निरोध (संवृत) करके पाँच महाव्रतों का पालन करता है, महान तेजस्वी होता है ॥४७॥
The scriptural knowledge of such humble disciple begets respect in the world. Being doubtless and enjoined to ascetic code of conduct ( साधु समाचारी) that (disciple) ascetic observes penances ( तप) and contemplation (समाधि) and becomes dear to his preacher. He retains the inflow of Karmic energy and by fulfilling the five great vows acquires glow. (47)
स देव- गन्धव्व- मणुस्सपूइए, चइत्तु देहं मलपंकपुव्वयं । सिद्धे वा हवइ सासए, देवे वा अप्परए महिड्ढि ॥४८॥
-त्ति बेमि
वह (विनीत शिष्य) देव - मानव-गंधर्वों द्वारा वन्दनीय हो जाता है तथा मल-पंक (रक्त-वीर्य) से निर्मित इस वर्तमान मानव शरीर को त्यागकर या तो शाश्वत सिद्धि प्राप्त करता है अथवा अल्पकर्म वाला महर्द्धिक देव बनता है ॥ ४८ ॥
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- ऐसा मैं कहता हूँ।
Such disciplined pupil - ascetic begets honour by gods, gandharvas (a kind of gods) and human beings. After leaving this impure and flthy human body either he attains eternal salvation or becomes a god of great paraphernalia and having a-few karma-particles. (48) -Such I speak.
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