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५०९] षट्त्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
तिण्णेव अहोरत्ता, उक्कोसेण वियाहिया ।
आउट्टिई तेऊणं, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥११३॥ तेजस्कायिक जीवों की आयुस्थिति उत्कृष्टतः तीन अहोरात्र-दिन-रात्रि-७२ घण्टे की है और जघन्य आयुस्थिति अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है ।।११३॥
Longest duration of fire-bodied beings is of three days and nights-seventytwo hours and shortest duration is of antarmuhurta. (113)
असंखकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं ।
कायट्ठिई तेऊणं, तं कायं तु अमुंचओ ॥११४॥ अपनी काय को न छोड़ते हुए-उसी में जन्म-मरण करते हुए तेजस्कायिक जीवों की कायस्थिति उत्कृष्टतः असंख्यात काल की और जघन्य कायस्थिति अन्तर्मुहूर्त काल की होती है ।।११४॥
Longest body-duration (continuous births and deaths in the same body) of fire-bodied living beings is of innumerable time and shortest body duration is of antarmuhūrta. (114)
अणन्तकालमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं ।
विजदंमि सए काए, तेउजीवाण अन्तरं ॥११५॥ अपनी काय (तेजस्काय) से निकलने-छोड़ने (से लेकर अन्य काय में जाकर जन्म-मरण करते हुए विताया हुआ काल-अन्तराल और पुनः तेजस्काय में उत्पन्न होने तक का समय) तेजस्कायिक जीवों का अन्तर उत्कृष्टतः अनन्तकाल का और जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त काल का होता है ।।११५॥
The longest interval period (leaving fire-body, taking births and deaths elsewhere and then taking birth again in fire-body) of fire-bodied living beings is of infinite time and shortest interval period is of antarmuhurta. (115)
एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ ।
संठाणादेसओ वावि, विहाणाइं सहस्ससो ॥११६॥ वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श के आदेश-अपेक्षा से इन तेजस्कायिक जीवों के हजारों भेद बताये गये हैं ||११६॥
With respect of colour, smell, taste, touch and form, thousand kinds are said of firebodied living beings. (116) वायु त्रस काय की प्ररूपणा
दुविहा वाउजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा ।
पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो ॥११७॥ ___ वायुकायिक जीवों के दो प्रकार कहे गये हैं-(१) सूक्ष्म और (२) बादर। इन दोनों प्रकारों के पुनः दो-दो भेद होते हैं-(१) पर्याप्त और (२) अपर्याप्त ॥११७॥ ___ Two types are said of air-bodied beings-(1) subtle and (2) gross. Again these are subdivided into two kinds-(1) fully developed and (2) undeveloped. (117)
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