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तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
षट्त्रिंश अध्ययन [५१०
बायरा जे उ पज्जत्ता, पंचहा ते पकित्तिया ।
उक्कलिया-मण्डलिया-, घण-गुंजा सुद्धवाया य ॥११८॥ जो पर्याप्त बादर वायुकायिक जीव हैं, वे पाँच प्रकार के कहे गये हैं-(१) उत्कलिक वात (२) मण्डलिका वात (३) घनवात (४) गुंजावात और (५) शुद्धवात ॥११८॥
Fully developed gross air-bodied beings are of five kinds-(1) squalls or intermittent winds, (utkalika) (2) whirl winds (mandalikā), (3) thick winds (ghana) (4) high wind or buzzing wind (gunjā) (5) low wind or pure air (suddha)-(118)
संवट्टगवाते य, ऽणेगविहा एवमायओ ।
एगविहमणाणत्ता, सुहमा ते वियाहिया ॥११९॥ संवर्तक वात आदि और अनेक प्रकार के बादर पर्याप्त वायुकायिक जीव हैं। नानात्व (अनेक प्रकार के भेदों) से रहित सूक्ष्म वायुकायिक जीवों का एक ही भेद है ||११९॥
Circular blowing wind (samvartaka) etc., and many other kinds of air-bodied living beings. Subtle air-bodied beings have no variations, these are of only one type. (119)
सुहमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा ।
इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउव्विहं ॥१२०॥ सूक्ष्म वायुकायिक जीव सर्वलोक में व्याप्त हैं किन्तु बादर वायुकायिक जीव लोक के एक देश (अंश या भाग) में ही हैं। यहाँ से आगे में वायुकायिक जीवों के चार प्रकार का कालविभाग कहूँगा ||१२०॥
Subtle air-bodied beings are filled in whole universe (loka) while gross air-bodied beings are in a part of it.
Now further I shall describe the fourfold divisions of air-bodied beings with regard to time. (120)
संतई पप्पऽणाईया, 'अपज्जवसिया वि य ।
ठिइं पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ॥१२१॥ संतति-प्रवाह की अपेक्षा वायुकायिक जीव अनादि अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा वे सादि-सान्त भी हैं ||१२१॥
With regard to continuity air-bodied beings have neither beginning nor end but regarding individual duration they have beginning and an end too. (121)
तिण्णेव सहस्साई, वासाणुक्कोसिया भवे ।
आउट्ठिई वाऊणं, अन्तोमुहत्तं जहन्निया ॥१२२॥ उनकी (वायुकायिक जीवों की) उत्कृष्ट आयुस्थिति तीन हजार वर्ष की है और जघन्य आयुस्थिति अन्तर्महर्त प्रमाण है ॥१२२॥
Longest age-duration of air-bodied beings is of three thousand years and shortest age duration is of artarnuhurta. (122)
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