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in सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
षट्त्रिंश अध्ययन [५०८
There are two kinds of fire-bodied living beings-(1) subtle and (2) gross. Again these are divided into two sub-divisions-(1) fully developed and (2) undeveloped. (108)
बायरा जे उ पज्जत्ता, णेगहा ते वियाहिया ।
इंगाले मुम्मरे अग्गी, अच्चि जाला तहेव य ॥१०९॥ जो बादर पर्याप्त तेजस्कायिक जीव हैं, उनके अनेक प्रकार बताये गये हैं; यथा-अंगार-निर्धूम अग्निकण, मुर्मुर-भस्ममिश्रित अथवा भस्म से आवरित अग्नि कण, अग्नि-आग, अर्चि-मूल सहित अग्निशिखा अथवा दीपशिखा या प्रकाशकिरण, ज्वाला-प्रदीप्त अग्नि-॥१०९॥
There are many types of fully developed gross fire-bodied living beings, e. g., -embers-fire particle without smoke (angāra), fire-particles covered or mixed with ashes (murmura), fire, flame of fire, flicker of a lamp (dīpaka), ray of light, blaze, burning fire-(109)
उक्का विज्जू य बोद्धव्वा, णेगहा एवमायओ ।
एगविहमणाणत्ता, सुहुमा ते वियाहिया ॥११०॥ उल्का-तारों के समान गिरने वाली आकाशीय अग्नि-यथा उल्कापात, विद्युत्-मेघों के संघर्ष से उत्पन्न होने वाली आकाशीय बिजली-इत्यादि तेजस्कायिक जीव अनेक प्रकार के जानने चाहिए।
नानात्व (अनेकता) से रहित सूक्ष्म तेजस्कायिक जीव एक ही प्रकार के कहे गये हैं ।।११०॥ Meterors, lightning etc., these all are kinds of fire-bodied species. Subtle fire-bodied living beings are of only one type, having no variations. (110)
सुहुमा सव्वलोगम्मि, लोग देसे य बायरा ।
इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउव्विहं ॥१११॥ सूक्ष्म तेजस्कायिक जीव समस्त लोक में व्याप्त (भरे हुए) हैं किन्तु बादर तेजस्कायिक जीव लोक के एक देश (अंश या भाग) में ही हैं।
यहाँ से आगे अब मैं उन (तेजस्कायिक जीवों के) चार प्रकार के काल विभाग को कहूँगा ॥१११॥
Subtle fire-bodied beings are filled in whole universe (loka) while gross fire bodied beings reside only in a part of it.
Now further I shall describe the fourfold division of fire-bodied beings with regard to time. (111)
संतई पप्पऽणाईया, अपज्जवसिया वि य ।
ठिइं पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ॥११२॥ वे (बादर तेजस्कायिक जीव) संतति-प्रवाह की अपेक्षा अनादि-अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा सादि-सांत भी हैं ||११२॥
With regard to continuity the gross fire-bodied living beings have neither beginning nor end but with regard to individual duration they have beginning and an end too. (112)
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