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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
षट्त्रिंश अध्ययन [४९६
(१) संसारस्थ (संसारी) और (२) सिद्ध (संसार-मुक्त)-जीव दो प्रकार के बताये गये हैं। सिद्ध जीव अनेक प्रकार के कहे गये हैं, उनका मैं वर्णन करता हूँ, सुनो ॥४८॥
The souls are of two kinds-(1) mundane and (2) emancipateds. Emancipated souls are said of many types. I describe about them, hear. (48) सिद्ध जीवों की प्ररूपणा
इत्थी पुरिससिद्धा य, तहेव य नपुंसगा ।
सलिंगे अन्नलिंगे य, गिहिलिंगे तहेव य ॥४९॥ स्त्री-पुरुष-नपुंसक, स्वलिंग, अन्यलिंग और गृहस्थ लिंग से जीव सिद्ध होते हैं ॥४९॥
Emancipation may be attained by women, man, impotent (eunuch), sage of Jain order, hermitages of other orders (but essentially possessing right faith-knowledge-conduct) and householders. (49)
उक्कोसोगाहणाए य, जहन्नमज्झिमाइ य ।
उड्ढं अहे य तिरियं च, समुद्दम्मि जलम्मि य ॥५०॥ उत्कृष्ट अवगाहना में, जघन्य और मध्यम अवगाहना में (सिद्ध होते हैं) तथा ऊर्ध्वलोक में, तिर्यक् लोक में, अधोलोक में और समुद्र तथा जल (नदी, जलाशय आदि) में जीव सिद्ध होते हैं ॥५०॥
Salvation may be attained by the people of greatest, middle and small size (avagāhana) and from higher regions, surface of earth, nether regions, waters (river or pond) and ocean. (50)
दसं चेव नपंसेस, वीसं इत्थियासु य ।
पुरिसेसु य अट्ठसयं, समएणेगेण सिज्झई ॥५१॥ एक समय में (अधिक से अधिक) नपुंसकों में से दस, स्त्रियों में से बीस और पुरुषों में से १०८ जीव सिद्ध हो सकते हैं ॥५१॥
Utmost ten from impotents, twenty from women and one hundred eight from men, souls can be liberated in one samaya (indivisible shortest particle of time). (51)
चत्तारि य गिहिलिंगे, अन्नलिंगे दसेव य ।
सलिंगेण य अट्ठसयं, समएणेगेण सिज्झई ॥५२॥ गृहस्थलिंग में चार, अन्यलिंग में दस और स्वलिंग में १०८ जीव एक समय में सिद्ध हो सकते हैं ॥५२॥
And four from householders, ten from other orders and one hundred eight from Jain order-souls can attain liberation in one samaya. (52)
उक्कोसोगाहणाए य, सिज्झन्ते जुगवं दुवे ।
चत्तारि जहन्नाए, जवमज्झऽठुत्तरं सयं ॥५३॥ उत्कृष्ट अवगाहना में दो, जघन्य अवगाहना में चार और मध्यम अवगाहना में १०८ जीव सिद्ध (एक समय में) हो सकते हैं ॥५३॥
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