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३८३] एकोनत्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
सूत्र ६८-(प्रश्न) भगवन् ! क्रोधविजय से जीव को क्या प्राप्त होता है?
(उत्तर) क्रोध-विजय से जीव को शान्ति (क्षमाभाव) की प्राप्ति होती है। क्रोध-वेदनीय कर्म का बन्ध नहीं होता और पूर्वबद्ध कर्म की निर्जरा हो जाती है।
Maxim 68. (Q). Bhagawan ! What does the soul acquire by conquering anger ?
(A). By conquering anger the soul attains forgiveness, does not bind new karmas due to anger and annihilates formerly accumulated karmas thereby.
सूत्र ६९-माणविजएणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? माणविजएणं मद्दवं जणयइ, माणवेयणिज्जं कम्मं न बन्धइ, पुव्ववद्धं च निज्जरेइ ॥ सूत्र ६९-(प्रश्न) भगवन् ! मान-विजय से जीव क्या प्राप्त करता है?
(उत्तर) मान-विजय से जीव मृदुता (कोमलता-नम्रता) को प्राप्त करता है। मान-वेदनीय कर्म का बन्ध नहीं होता और पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है।
Maxim 69. (Q). Bhagawan ! What does the soul obtain by conquering pride.
(A). Conquer of pride begets modesty to soul, new karmas due to pride are not bound and formerly acquired karmas annihilated generated by pride.
सूत्र ७0-मायाविजएणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? मायाविजएणं उज्जुभावं जणयइ, मायावेयणिज्जं कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ॥ सूत्र ७0-(प्रश्न) भगवन् ! माया-विजय से जीव को क्या प्राप्त होता है?
(उत्तर) माया-विजय से जीव को ऋजुभाव (सरलता) की प्राप्ति होती है। माया-वेदनीय कर्म का बन्ध नहीं होता और पूर्ववद्ध कर्मों की निर्जरा होती है।
Maxim 70. (Q). Bhagawan ! What does the soul attain by conquering deceit ?
(A). By conquering deceit, the soul attains simplicity, does not bind deceit-fruitive new karmas and annihilates such karmas as acquired before.
सूत्र ७१-लोभविजएणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? लोभविजएणं संतोसीभावं जणयइ, लोभवेयणिज्ज कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ॥ सूत्र ७१-(प्रश्न) भगवन् ! लोभ-विजय से जीव क्या प्राप्त करता है?
(उत्तर) लोभ-विजय से जीव को संतोष-भाव प्राप्त होता है। लोभ-वेदनीय कर्म नहीं बँधता और पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा होती है।
Maxim 71. (Q). Bhagawan ! What does the soul obtain by conquering greed ?
(A). By conquering greed, the soul obtains contentment, does not bind greed-effected new karmas, annihilates such karmas formerly accumulated.
सूत्र ७२-पेज्ज-दोस-मिच्छादसण-विजएणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
पेज्ज-दोस-मिच्छादसणविजएणं नाण-दंसण-चरित्ताराहणयाए अब्भुढेइ । अट्ठविहस्स कम्मस्स कम्मगण्ठिविमोयणयाए तप्पढमयाए जहाणुपुच्विं अट्ठवीसइविहं मोहणिज्जं कम्मं उग्घाएइ, पंचविहं
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