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in सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
एकोनत्रिंश अध्ययन [३८२
घाणिन्दियनिग्गहेणं मणुनामणुन्नेसु गन्धेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ॥
सूत्र ६५-(प्रश्न) भगवन् ! घ्राण इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है?
(उत्तर) ध्राण इन्द्रिय के निग्रह से मनोज्ञ और अमनोज्ञ गन्धों (सुगन्ध और दुर्गन्ध) पर होने वाले राग-द्वेष का निग्रह हो जाता है और फिर वह तनिमित्तक (गंध से होने वाले) कर्मों को नहीं बाँधता, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है।
___Maxim 65. (Q). Bhagawan ! What does the soul obtain by subduing the sense of smell (nose)?
(A). By subduing the sense of smell, the soul obstructs the feelings of attachment and detachment to pleasant and unpleasant smells, does not bind the karmas produced thereby and destructs the karmas accumulated formerly.
सूत्र ६६-जिब्भिन्दियनिग्गहेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
जिभिन्दियनिग्गहेणं मणुनामणुन्नेसु रसेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ॥
सूत्र ६७-(प्रश्न) भगवन् ! जिह्वा इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है? (उत्तर) जिह्वा इन्द्रिय के निग्रह से मनोज्ञ-अमनोज्ञ रसों में होने वाले राग-द्वेष का निग्रह हो जाता है और फिर वह तनिमित्तक (रसों के प्रति होने वाले राग-द्वेष के कारण) कर्मों का बन्ध नहीं करता तथा पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है।
Maxim 66. (0). Bhagawan ! What does the soul attain by subduing the sense of taste (tongue)?
(A). By suduing sense of taste, the soul checks up the attachment and detachment towards the pleasant and unpleasant tastes, so does not bind the karmas relating these and annihilates the formerly acquired karmas.
सूत्र ६७-फासिन्दियनिग्गहेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
फासिन्दियनिग्गहेणं मणुनामणुन्नेसु फासेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ॥
सूत्र ६७-(प्रश्न) भगवन् ! स्पर्श-इन्द्रिय के निग्रह से जीव क्या प्राप्त करता है?
(उत्तर) स्पर्शेन्द्रिय के निग्रह से मनोज्ञ और अमनोज्ञ (सुखद और दुःखद) स्पर्शों पर होने वाले राग-द्वेष का निग्रह होता है। और फिर वह तन्निमित्तक कर्मों का बन्धन नहीं करता; पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है।
Maxim 67. (Q). Bhagawan! What does the soul obtain by subduing sense of touch?
(A). By subduing sense of touch, the soul becomes indifferent towards the happy and unhappy touches, does not bind new karmas thereby and annihilates the karmas formerly bound by these.
सूत्र ६८-कोहविजएणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? कोहविजएणं खन्तिं जणयइ, कोहवेयणिज्ज कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निजरेइ ॥
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