________________
३७५] एकोनत्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
(उत्तर) प्रतिरूपता से जीव लघुता प्राप्त करता है। लघुभूत होकर जीव प्रमाद रहित, प्रकट लिंग (वेष) वाला, प्रशस्त लिंग वाला, विशुद्ध सम्यक्त्वी, धैर्य (सत्त्व) और समितियों से परिपूर्ण, सभी प्राण-भूतजीव-सत्त्वों के लिए विश्वसनीय, अल्प प्रतिलेखना वाला, जितेन्द्रिय, विपुल तप और समितियों से सम्पन्न होता है।
Maxim 43. (Q). Bhagawan ! What does the soul obtain conforming to standard (practising the conduct like Jinakalpa) ?
(A). By conforming to standard (practising the rigorous conduct as Jinakalpa) the soul becomes light-at ease. Thereby he becomes non-negligent, apparent apparelled, auspicious apparelled, pure right faithed, steady, strong vigilent, trustworthy for the living beings of all six species, a few inspection, conqueror of senses, opulent with great penances and circumspections.
सूत्र ४४-वेयावच्चेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? वेयावच्चेणं तित्थयरनामगोत्तं कम्मं निबन्धइ ॥ सूत्र ४४-(प्रश्न) भगवन् ! वैयावृत्य से जीव को क्या उपलब्ध होता है? (उत्तर) वैयावृत्य से जीव तीर्थंकर नाम-गोत्र कर्म का बन्धन (उपार्जन) करता है।
Maxim 44. (Q). Bhagawan ! What does the soul obtain by rendering service to teachers and fellow monks etc.?
(A). By rendering service the soul accumulates tirthařkara Nāma-Gotra karmas. सूत्र ४५-सव्वगुणसंपन्नयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
सव्वगुणसंपन्नयाए णं अपुणरावत्तिं जणयइ । अपुणरावत्तिं पत्तए य णं जीवे सारीरमाणसाणं दुक्खाणं नो भागी भवइ ॥
सूत्र ४५-(प्रश्न) भगवन् ! सर्वगुणसम्पन्नता से जीव को क्या प्राप्त होता है?
(उत्तर) सर्वगुणसम्पन्नता से जीव अपुनरावृत्ति (मोक्ष) को प्राप्त करता है। अपुनरावृत्ति को प्राप्त जीव शारीरिक और मानसिक दुःखों का भागी नहीं होता।
Maxim 45. (Q). Bhagawan ! What does the soul attain by acquisition of all virtues ?
(A). By acquisition of all virtues, the soul obtains salvation and then the mental and bodily miseries do not even touch him.
सूत्र ४६-वीयरागयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
वीयरागयाए णं नेहाणुबन्धणाणि, तण्हाणुबन्धणाणि य वोच्छिन्दइ । मणुन्नेसु सद्द-फरिसरस-रूव-गन्धेसु चेव विरज्जइ ।
सूत्र ४६-(प्रश्न) भगवन् ! वीतरागता से जीव को क्या प्राप्त होता है?
(उत्तर) वीतरागता से जीव स्नेह और तृष्णा के अनुबन्धनों को तोड़ देता है-विच्छिन्न कर देता है। मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध से भी विरक्त हो जाता है।
Maxim 46. (Q). Bhagawan! What does the soul attain by freedom of attachment ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.fairlibrary.org