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त सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
एकोनत्रिंश अध्ययन [३७०
Maxim 28. (Q). Bhagawan ! What does the soul achieve by penance ?
(A). By penance, annihilating the formerly accumulated karmas, the soul obtains purification.
सूत्र २९-वोदाणेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
वोदाणेणं अकिरियं जणयइ । अकिरियाए भवित्ता तओ पच्छा सिज्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परिनिव्वाएइ, सव्वदुक्खाणमन्तं करेइ ॥
सूत्र २९-(प्रश्न) भगवन् ! व्यवदान से जीव को क्या प्राप्त होता है?
(उत्तर) व्यवदान से जीव को अक्रियता (मन-वचन-काय योगों की प्रवृत्ति से रहितता) प्राप्त होती है। अक्रियता होने के उपरान्त वह सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होता है और सम्पूर्ण दुःखों का अन्त (विनाश) कर देता है। ___Maxim 29. (Q). Bhagawan ! What does the soul obtain by purification (वोदाण) ?
(A). By purification the soul obtains freedom from activities of mind, speech and body. Thereby he becomes liberated, enlightened, emancipated, finally deliberated and puts an end to all miseries.
सूत्र ३०-सुहसाएणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
सुहसाएणं अणुस्सुयत्तं जणयइ । अणुस्सुयाए णं जीवे अणुकम्पए, अणुब्भडे, विगयसोगे, चरित्तमोहणिज्ज कम्मं खवेइ ॥
सूत्र ३०-(प्रश्न) भगवन् ! सुख-शात से जीव क्या प्राप्त करता है ?
(उत्तर) सुख-शात (वैषयिक सुखों की स्पृहा के शातन-निवारण-उपशान्तता) से (विषयों के प्रति-) अनुत्सुकता होती है, अनुत्सुकता से जीव अनुकम्पाशील, अनुद्धत (अणुब्भड) तथा विगतशोक-शोकरहित होकर चारित्रमोहनीय कर्म का क्षय करता है।
Maxim 30. (Q). Bhagawan ! What does the soul get from the subduing of worldly pleasures ?.
(A). By subduing the wishes of sensual pleasures the soul obtains non-eagerness towards sensual amusements. Thereby he becomes compassionate, proudless and devoid of sorrow and then destroys the conduct-obstructing infatuation karma.
सूत्र ३१-अप्पडिबद्धयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
अप्पडिबद्धयाए णं निस्संगत्तं जणयइ । निस्संगत्तेणं जीवे एगे, एगग्गचित्ते, दिया य राओ य असज्जमाणे, अप्पडिबद्धे यावि विहरइ ॥
सूत्र ३१-(प्रश्न) भगवन् ! अप्रतिबद्धता से जीव क्या प्राप्त करता है?
(उत्तर) अप्रतिबद्धता (आसक्ति रहितता) से जीव निस्संग होता है। निस्संगता से वह एकाकी-अकेला (आत्मनिष्ठ) एकाग्र चित्तवाला होकर दिन और रात-सदा सर्वत्र विरक्त और अप्रतिबद्ध होकर विचरण करता है।
Maxim 31. (Q). Bhagawan! What does the soul achieve by non-attachment ?
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