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त सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
एकोनत्रिंश अध्ययन [३६६
सूत्र १५-थव-थुइमंगलेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
थवथुइमंगलेणं नाण-दसण-चरित्त बोहिलाभं जणयइ । नाण-दसण-चरित्त-बोहिलाभसंपन्ने य णं जीवे अन्तकिरियं कप्पविमाणोववत्तिगं आराहणं आराहेइ ॥
सूत्र १५-(प्रश्न) भगवन् ! स्तव-स्तुति-मंगल से जीव को क्या प्राप्त होता है ?
(उत्तर) स्तव-स्तुति-मंगल से जीव को ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूप बोधि (रत्नत्रय) की प्राप्ति होती है। ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूप बोधिलाभ संपन्न जीव अन्तक्रिया (मुक्ति) अथवा कल्पविमानों (वैमानिक देवों) में उत्पन्न होने के योग्य आराधना का आराधन करता है।
Maxim 15. (Q). Bhagawan ! What does the soul obtain from praises and hymns?
(A). By praises and hymns the soul obtains wisdom consisting right knowledge-faithconduct. Thereby the soul practises such propiliations which enable him either to attain salvation or to take birth in higher heavens as a god with great fortuness.
सूत्र १६-कालपडिलेहणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? कालपडिलेहणयाए णं नाणावरणिज्जं कम्मं खवेइ ॥ सूत्र १६-(प्रश्न) भगवन् ! काल की प्रतिलेखना (निरीक्षण) से जीव को क्या प्राप्त होता है?
(उत्तर) काल की प्रतिलेखना से (स्वाध्याय आदि धर्मक्रियाओं के लिए उपयुक्त समय का ध्यान रखने से) जीव ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय करता है।
Maxim 16. (Q). Bhagawan ! What does the soul get by inspection of time ?
(A). By inspection of time (keeping the remembrance of proper time for religious activities like study etc.,) the soul destructs knowledge obscuring karma.
सूत्र १७-पायच्छित्तकरणेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
पायच्छित्तकरणेणं पावकम्मविसोहिं जणयइ, निरइयारे यावि भवइ । सम्मं च णं पायच्छित्तं पडिवजमाणे मग्गं च मग्गफलं च विसोहेइ । आयारं च आयारफलं च आराहेइ ॥
सूत्र १७-(प्रश्न) भगवन् ! प्रायश्चित्त (पापों का विशोधन) करने से जीव को क्या प्राप्त होता है ?
(उत्तर) प्रायश्चित्त करने से जीव पापकर्मों का विशोधन करके निरतिचार बनाता है। सम्यक्प से प्रायश्चित्त को स्वीकार करता हुआ साधक मार्ग (सम्यग्दर्शन) और मार्गफल (सम्यग्ज्ञान) को विशुद्ध करता है तथा आचार (चारित्र) और आचार फल (मोक्ष) की आराधना करता है।
Maxim 17. (Q). Bhagawan ! What does the soul attain by exculpation ?
(A). By exculpation the soul purifying the sinful deeds becomes faultless. Thereby he. rectifies the path (right faith) and fruit of path (right knowledge) and propiliates the conduct and the fruit of conduct-liberation...
सूत्र १८-खमावणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
खमावणयाए णं पल्हायणभावं जणयइ | पल्हायणभावमुवगए य सव्वपाण-भूय-जीवसत्तेसु मित्तीभावमुप्पाएइ । मित्तीभावमुवगए यावि जीवे भावविसोहिं काउण निब्भए भवइ ॥
सूत्र १८-(प्रश्न) भगवन् ! क्षमापना से जीव को क्या प्राप्त होता है ?
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