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३६५] एकोनत्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
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(A). By reverence to teachers etc., the soul destructs the karma of low lineage and accumulates the karma of high lineage. He acquires wide fortuness and becomes dear to all. His authority everywhere accepted and he attains general goodwill.
सूत्र १२-पडिक्कमणेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
पडिक्कमणेणं वयछिद्दाई पिहेइ । पिहियवयछिद्दे पुण जीवे निरुद्धासवे, असबलचरित्ते, अट्ठसु पवयणमायासु उवउत्ते अपुहत्ते सुप्पणिहिए विहरइ ॥
सूत्र १२-(प्रश्न) भगवन् ! प्रतिक्रमण से जीव को क्या प्राप्त होता है ?
(उत्तर) प्रतिक्रमण से जीव अपने ग्रहण किये हुए व्रतों के छिद्रों (स्खलनाओं-दोषों-अतिचारों) को बन्द कर देता है। व्रतों के छिद्रों को बन्द करने वाला जीव आनवों का निरोध कर देता है, निर्दोष (अशबल) चारित्र का पालन करता है, समिति-गुप्तिरूप आठ प्रवचन-माताओं के पालन में सदा उपयोगयुक्त रहता है। चारित्र में एकरूप (अपुहत्त) होकर संयम में सम्यक्रूरूप से प्रणिहित-समाहित-चित्त होकर विचरण करता है।
Maxim 12. (Q). Bhagawan ! What does the soul obtain by expiation of sins ?
(A). By expiation of sins the soul obviates the transgressions of the vows he has accepted; thereby he stops the karma-influx, practises pure conduct, always remains attentive to practise eight pravacana-mātā, united in conduct and restrain lives rooted in the right path.
सूत्र १३-काउस्सग्गेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
काउस्सग्गेणं ऽतीय-पडुप्पन्नं पायछित्तं विसोहेइ । विसुद्धपायच्छित्ते य जीवे निव्वुयहियए ओहरियभारो व्व भारवहे, पसत्थज्झाणोवगए, सुहंसुहेणं विहरइ ॥
सूत्र १३-(प्रश्न) भगवन् ! कायोत्सर्ग (शरीर के प्रति ममत्व त्याग) से जीव को क्या प्राप्त होता है ?
(उत्तर) कायोत्सर्ग से जीव अतीत (भूतकाल) और वर्तमान के प्रायश्चित्त योग्य अतिचारों का विशोधन करता है और प्रायश्चित्त से विशुद्ध हुआ जीव भार को उतार (हटा) देने वाले भारवाहक के समान शान्तचिन्तामुक्त होकर प्रशस्त (शुभ) ध्यान में लीन हो जाता है तथा सुखपूर्वक विचरण करता है।
Maxim 13. (Q). Bhagawan ! What does the soul get by lack of affection towards body (Kāyotsarga) ?
(A). By lack of affection towards body the soul rectifies atonable transgressions of past and present. Thus purified soul becomes light like a porter who has taken off his load, and lives on happily concentrated in auspicious meditation.
सूत्र १४-पच्चक्खाणेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? पच्चक्खाणेणं आसवदाराई निरुम्भइ । सूत्र १४-(प्रश्न) भगवन् ! प्रत्याख्यान (संसार संबंधी विषयों के त्याग) से जीव को क्या प्राप्त होता है ? (उत्तर) प्रत्याख्यान से जीव आम्रवद्वारों (कर्मबन्ध के हेतुओं) का निरोध कर देता है।
Maxim 14. (Q). Bhagawan ! What does the soul obtain by formal renunciation pratyākhyāna) ?
(A). By formal renunciation the soul shuts up the channels of karma-influx.
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