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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
एकोनत्रिंश अध्ययन [ ३६४
सूत्र ८ - ( प्रश्न) भगवन् ! गर्हा - गर्हणा ( दूसरे के सामने दोषों का प्रकाशन) से जीव क्या प्राप्त करता है ?
(उत्तर) गर्हा (गर्हणा ) से जीव को अपुरस्कार ( गौरव का अभाव ) प्राप्त होता है। अपुरस्कृत होने से जीव अप्रशस्त योगों (कार्यों) से निवृत्त होता है ( प्रशस्त योगों - कार्यों से युक्त होता है ।) प्रशस्त योगों से प्रतिपन्न अनगार आत्मा के गुणों का घात करने वाले (ज्ञानावरण, मोहनीय आदि) कर्मों की अनन्त पर्यायों को क्षय करता है।
Maxim 8. (Q ). Bhagawan ! What does the soul acquire by decrial his sins, before others?
(A). By decrial of his sins soul attains humility. Being humble he keeps off from demeritorious deeds and involves himself in meritorious deeds. Being opulent with auspicious deeds and energies destroys infinite modifications of vitiating karmas-like knowledge-obstructing karma, infatuation or delusion karma etc., which injures the virtues of
soul.
सूत्र ९ - सामाइए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? सामाइएणं सावज्जजोगविरइं जणयइ ॥
सूत्र ९ - ( प्रश्न) भगवन् ! सामायिक (समभाव) से जीव को क्या उपलब्धि प्राप्त होती है ? (उत्तर) सामायिक द्वारा जीव सावद्ययोगों (पापकारी प्रवृत्तियों) से विरति को प्राप्त करता है। Maxim 9. (Q ). Bhagawan ! What does the soul attain by practice of equanimity ? (A). By practice of equanimity soul attains disinclination from sinful activities.
सूत्र १० - चउव्वीसत्थएणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
चउव्वीसत्थएणं दंसणविसोहिं जणयइ ॥
सूत्र १०- ( प्रश्न) भगवन् ! चतुर्विंशति-स्तव से जीव को क्या (लाभ) प्राप्त होता है ?
(उत्तर) चतुर्विंशति - स्तव ( चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति-स्तवन) से जीव दर्शनविशुद्धि प्राप्त करता है ।
Maxim 10. (Q). Bhagawan ! What does the soul obtain by singing praise of 24 tirthamkaras ?
(A). By singing praise of 24 tirtharikaras the soul attains purity of faith.
सूत्र ११ - वन्दणएणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
वन्दणणं नीयागोयं कम्मं खवेइ | उच्चागोयं निबन्धइ । सोहग्गं च णं अप्पडिहयं आणाफलं निव्वत्ते, दाहिणभावं च णं जणयइ ॥
सूत्र ११ - ( प्रश्न) भगवन् ! वन्दना से जीव को क्या प्राप्त होता है ?
(उत्तर) वन्दना से जीव नीच गोत्र कर्म का क्षय करता है। उच्च गोत्र कर्म का बन्ध करता है। अप्रतिहत सौभाग्य को प्राप्त कर सर्वजनप्रिय होता है। उसकी आज्ञा सर्वत्र स्वीकार की जाती है। वह लोगों से दाक्षिण्य-लोकप्रियता प्राप्त करता है।
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Maxim 11. (2). Bhagawan ! What does the soul obtain by paying reverence (bowing down with devotion) to preceptors, preachers and teachers ?
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