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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
अष्टाविंश अध्ययन [ ३५०
८. क्रिया रुचि - दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, विनय, सत्य, समिति तथा गुप्तियों में जो क्रियाभाव रुचि है, वह निश्चय ही क्रिया रुचि है ॥२५॥
(8) Interest to religious activities - The interest in practising of faith, knowledge, conduct, penance, modesty, circumspections etc., that is interest to religious activities. (25)
अणभिग्गहिय - कुदिट्ठी, संखेवरुइ त्ति होइ नायव्वो । अविसारओ पवयणे, अणभिग्गहिओ य सेसेसु ॥२६॥
९. संक्षेप रुचि - जो वीतराग - प्रवचन में विशारद नहीं है और शेष अन्य मतों पर भी जिसकी गृहीत बुद्धि नहीं है, जिसने कुदृष्टि भी ग्रहण नहीं की है, वह संक्षेप रुचि होता है, ऐसा समझना चाहिए ॥ २६ ॥
(9) Brief interest-Who is not well-versed in sacred doctrines of Jinas, and has not intellect to adopt other creeds, neither he belonged to wrong beliefs, that should be known having brief interest. (26)
जो अत्थिकायधम्मं, सुयधम्मं खलु चरित्तधम्मं च । सद्दes जिणाभिहियं, सो धम्मरुइ त्ति नायव्वो ॥२७॥
१०. धर्मरुचि - जो जिनेन्द्र-कथित अस्तिकाय धर्म, श्रुतधर्म और चारित्रधर्म पर श्रद्धान करता है, वह निश्चय ही धर्मरुचि होता है, ऐसा जानना चाहिए ॥२७॥
( 10 ) Religious interest - Who believes the truths explained by Jinas about fundamentals, elements, śruta and conduct order, he is of religious interest, it should be known. (27)
परमत्थसंथवो वा, सुदिट्ठपरमत्थसेवणा वा वि ।
वावण्णकुदंसणवज्जणा, य सम्मत्तसद्दहणा ॥ २८ ॥
१. परमार्थ को जानना, उसका चिन्तन करना, २ . सुदृष्टिवान परमार्थ के तत्वद्रष्टाओं के गुणगान तथा उनकी सेवा करना ३. सम्यक्त्वभ्रष्ट और कुदर्शनी ( मिथ्यात्वी) का वर्जन करना, उनसे दूर रहना, यह सम्यक्त्व का श्रद्धान है | ( इन तीन गुणों से सम्यक्त्वी पहचाना जा सकता है ) ॥२८॥
To know the ultimate truth and pondering over it, devotion, servitude and appraisal of wise and fix in right faith, avoiding of schismatical and heretic tenets, it is right belief. (By these three qualities right-faithed person can be recognised.) (28)
नत्थि चरित्तं सम्मत्तविहूणं, दंसणे उ भइयव्वं ।
सम्मत्त चरित्ताई, जुगवं पुव्वं व सम्मत्तं ॥ २९ ॥
सम्यक्त्व के बिना चारित्र नहीं होता किन्तु सम्यक्त्व बिना चारित्र के हो सकता है। सम्यक्त्व और चारित्र एक साथ (युगपत्) भी हो सकते हैं। किन्तु चारित्र से पहले सम्यक्त्व होना अनिवार्य है ॥२९॥
Right conduct cannot be without right belief but right belief may be without right conduct. Faith and conduct may originate altogether, but right conduct must precede right faith. (29)
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