________________
३२५] षड्विंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
(1) To utter word 'Āvassiya' while going out of the room-(the lodging place) is Avasyaki sāmācāri.
(2) To speak word 'Nisihiyan' while entering the lodging place is Naisedhiki samacari. (3) To take permission of preceptor etc., for his own work is Āprcchana sāmācāri.
(4) To take permission of preceptors etc., for the work of others is Pratiprcchanā sămācāri. (5)
छन्दणा दव्वजाएणं, इच्छाकारो य सारणे ।
मिच्छाकारो य निन्दाए, तहक्कारो य पडिस्सुए ॥६॥ (५) पूर्व में ग्रहण किये हुए द्रव्यों के लिए गुरु आदि को आमन्त्रित करना, छन्दना सामाचारी है।
(६) दूसरों का कार्य अपनी सहज रुचि से करना तथा अपना कार्य करने के लिए अन्यों को उनकी इच्छानुसार नम्र निवेदन करना (सारणा) इच्छाकार सामाचारी है।
(७) दोष की निवृत्ति के लिए आत्म-निन्दा, गर्दा करना मिथ्याकार सामाचारी है। (८) गुरुजनों के उपदेश को तथारूप में स्वीकार करना तथाकार सामाचारी है ॥६॥ (5) To invite teachers etc., for acquired things is Chandana sāmācārī.
(6) To do others' work with own wish and for own work to pray in modest words to others according to their will is Icchäkāra sāmācāri.
(7) For eradicating the slips or faults (committed) to blemish himself is Mithyäkära sāmācāri.
(8) To accept the preachings of preceptors etc., as they have said is Tathākara sāmācāri. (6)
अब्भुट्ठाणं गुरुपूया, अच्छणे उवसंपदा ।
एवं दु-पंच-संजुत्ता, सामायारी पवेइया ॥७॥ (९) गुरुजनों के सत्कार के लिए अपने आसन से उठकर खड़े हो जाना अभ्युत्थान सामाचारी है। (१०) किसी विशेष प्रयोजन से किसी अन्य आचार्य के पास रहना उपसम्पदा सामाचारी है। इस तरह दश प्रकार की सामाचारी का प्रतिपादन किया गया है ॥७॥ (9) For respect of preceptors etc., to stand up from own seat is Abhyutthāna sāmācāri.
(10) Placing himself with other preceptor for some special purpose is Upsampada samacari. Thus ten-typed correct system of behaviour (sāmācāri) is described. (7)
पुव्विल्लंमि चउब्भाए, आइच्चमि समुट्ठिए ।
भण्डयं पडिलेहित्ता, वन्दित्ता य तओ गुरुं ॥८॥ औत्सर्गिक दिनकृत्य-ओघ सामाचारी
सूर्य के ऊपर उठने पर दिन के प्रथम प्रहर के प्रथम चतुर्थ भाग में भण्डोपकरणों की प्रतिलेखना करे और उसके पश्चात् गुरु को वन्दन करके-॥८॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org