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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
Who is pure and lustrous like the gold tested by touchstone and purified by fire; and far away from attachment, detachment and fear, we call him a Brahmana. ( 21 )
पंचविंश अध्ययन [ ३१६
तवस्सियं किसं दन्तं, अवचियमंस-सोणियं । सुव्वयं पत्तनिव्वाणं, तं वयं बूम माहणं ॥ २२ ॥
जो तपस्वी होने से कृश है, जितेन्द्रिय है, जिसके शरीर का रक्त और मांस तपस्या के कारण कम हो गया है, जो सुव्रती है, शांत है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं ॥ २२ ॥
Who is lean by penances, subduer of senses, whose flesh and blood reduced due to austerities, observer of virtuous vows and calm; we call him a Brāhmana. (22)
वियाणेत्ता,
तसपाणे संगण य थावरे जो न हिंसइ तिविहेणं, तं वयं बूम माहणं ॥२३॥
जो स और स्थावर प्राणियों को भली प्रकार जानकर मन-वचन-काय से उनकी हिंसा नहीं करता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं ॥२३॥
Who does not hurt the movable and immovable beings knowingly by mind, words and body; we call him a Brāhmana. (23)
कोहा वा जइ वा हासा, लोहा वा जइ वा भया ।
मुसं न वयई जो उ, तं वयं बूम माहणं ॥२४॥
जो क्रोध से, हास्य से, लोभ से अथवा भय से मृषा (झूठ नहीं बोलता, उसे हम बाह्मण कहते हैं ||२४|| Who does not tell a lie due to anger, laughter, greed and fear; we call him a Brahmana. (24)
चित्तमन्तमचित्तं वा, अप्पं वा जई वा बहुं । न गेण्हइ अदत्तं जे, तं वयं वूम माहणं ॥ २५ ॥
जो सचित्त या अचित्त, थोड़ा अथवा बहुत कोई भी पदार्थ बिना दिये नहीं लेता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं ॥२५॥
Who does not take any thing without given by its owner, may it be sensient or insensient, more or less; we call him a Brahmana (25)
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दिव्व- माणुस - तेरिच्छं, जो न सेवइ मेहुणं । मणसा काय वक्केणं, तं वयं बूम माहणं ॥ २६ ॥
जो देव, मनुष्य, तिर्यञ्च संबंधी मैथुन ( अब्रह्मचर्य ) का मन, वचन, काय से सेवन नहीं करता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं ॥ २६ ॥
Who has no carnal fascination for a deity (god), man or beast, in thoughts, words or body; we call him a Brahmana. (26)
जहा पोमं जले जायं, नोवलिप्पइ वारिणा । एवं अलित्तो कामेहिं तं वयं बूम माहणं ॥ २७ ॥
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