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३१५] पंचविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र in
(Jayaghosa) The chief factor or essential subject of Vedas is Agnihotra (spiritual feeling, which purifies soul, like fire), of sacrifices the sacrificer-spiritual adept who fixes the mind and senses in self-control, of stars is the moon and of religion is Kaśyapa- Bhagawāna Rsabhadeva, by him all the religions originated. (16)
जहा चंदं गहाईया, चिट्ठन्ती पंजलीउडा ।
वन्दमाणा नमसन्ता, उत्तमं मणहारिणो ॥१७॥ जिस प्रकार चन्द्रमा के सम्मुख मनोहर ग्रहादि हाथ जोड़े हुए वन्दना-नमस्कार करते हुए रहते हैं उसी प्रकार देवता, इन्द्र आदि उत्तम पुरुष भगवान ऋषभदेव के सम्मुख रहते हैं ॥१७॥
As all the stars and planets bow to moon, so all the gods, king of gods worship and bow toRsabhadeva. (17)
अजाणगा जन्नवाई, विज्जा माहणसंपया ।
गूढा सज्झायतवसा, भासच्छन्ना इवऽग्गिणो ॥१८॥ ब्राह्मण की संपदा विद्या है लेकिन यज्ञवादी इससे अनभिज्ञ हैं। वे बाहर में स्वाध्याय और तप से उसी प्रकार ढंके हुए हैं जिस प्रकार राख से अग्नि आच्छादित रहती है ॥१८॥
The wealth of a Brāhmaṇa is learning but sacrificers are ignorant of it, they shroud themselves by study and penance as the fire covered by ashes. (18)
जे लोए बम्भणो वुत्तो, अग्गी वा महिओ जहा ।
सया कुसलसंदिटुं, तं वयं बूम माहणं ॥१९॥ जिसे संसार में कुशल पुरुषों ने ब्राह्मण कहा है तथा जो अग्नि के समान पूजित है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं ॥१९॥
Who is called Brāhmana by wise persons and to be worshipped like fire, we call that Brahmana. (19)
जो न सज्जइ आगन्तुं, पव्वयन्तो न सोयई ।
रमए अज्जवयणमि, तं वयं बूम माहणं ॥२०॥ जो स्वजन आदि प्रियजनों के आने पर आसक्त (प्रसन) नहीं होता और उनके चले जाने पर शोक नहीं करता, आर्य वचनों में (अर्हद्वाणी में) रमण करता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं ॥२०॥
Who does not appease by coming his dears and family members and nor repents if they go; and takes delight in noble words (of Arhatas), we call him a Brāhmana. (20)
जायरूवं जहामठे, निद्धन्तमलपावगं ।
राग-द्दोस-भयाईयं, तं वयं बूम माहणं ॥२१॥ ___ कसौटी पर कसे हुए और अग्नि में तपाकर शुद्ध किये हुए स्वर्ण के समान जो निर्मल और तेजस्वी है
तथा राग, द्वेष और भय से रहित है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं ॥२१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only
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