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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
( जयघोष मुनि) तुम वेद के मुख (प्रधान तत्त्व ) को नहीं जानते और यज्ञों का जो मुख ( उपाय) है, उसे भी नहीं जानते । नक्षत्रों का जो मुख (प्रधान) है, उसे भी नहीं जानते और जो धर्मों का मुख ( उपाय ) है, उसे भी नहीं जानते ॥११॥
पंचविंश अध्ययन [ ३१४
(Jayaghosa sage) You do not know what is the chief factor of Vedas, nor in sacrifices, nor in planets (stars) and nor in religion. ( 11 )
य ।
जे समत्था समुद्धत्तुं परं अप्पाणमेव न ते तुमं वियाणासि, अह जाणासि तो भण ॥१२॥
जो अपनी और दूसरों की आत्मा का उद्धार करने में समर्थ हैं, उन्हें भी तुम नहीं जानते । यदि जानते हो तो बताओ ॥१२॥
Even you not know those who are capable to save themselves and others; but if you do; you tell me. (12)
तस्सऽक्खेवपमोक्खं च, अचयन्तो तहिं दिओ । सपरिसो पंजली होउं, पुच्छई तं महामुणिं ॥१३॥
उसके (जयघोष मुनि के) आक्षेपों - प्रश्नों के उत्तर (प्रमोक्ष) देने में असमर्थ उस ब्राह्मण (विजयघोष) ने अपनी सम्पूर्ण परिषद के साथ हाथ जोड़कर उस महामुनि से पूछा - ॥१३॥
Those sacrificers could not reply these questions. Then he and all there assembled with folding hands asked the sage - (13)
वेयाणं च मुहं बूहि, बूहि जन्नाण जं मुहं ।
नक्खत्ताण मुहं बूहि, बूहि धम्माण वा मुहं ॥१४॥
( विजयघोष ) आप ही बताइये - वेदों का मुख क्या है ? यज्ञों का जो मुख है, वह भी कही । नक्षत्रों का जो मुख है, वह भी कहिए और धर्मों का जो मुख है, वह भी बताइये ॥१४॥
(Vijayaghosa) Then you please tell us the chief factor of Vedas, sacrifices, stars and religion. (14)
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जे
समत्था समुद्धत्तुं परं अप्पाणमेव य । एयं मे संसयं सव्वं, साहू ! कहसु पुच्छिओ ॥१५॥
जो अपना और दूसरों का उद्धार करने में समर्थ हैं, उन्हें भी बताइये। ये सब मेरे संशय हैं। हे साधु ! मैं आप से पूछता हूँ, आप बताइये ॥१५॥
Also tell who are capable to save themselves and others. All these are my doubts. O sage! kindly pacify these. (15)
अग्गिहोत्तमुहा वेया, जन्नट्टी वेयसां मुहं ।
नक्खत्ताण मुहं चन्दो, धम्माणं कासवो मुहं ॥१६॥
( जयघोष मुनि) वेदों का मुख अग्निहोत्र ( अग्निकारिका अध्यात्म) है, यज्ञों का मुख यज्ञार्थी (बहिर्मुख इन्द्रियों और मन को संयम में केन्द्रित करने वाला आत्मसाधक) है, नक्षत्रों का मुख चन्द्र है और धर्मों का मुख काश्यप ( ऋषभदेव ) है ॥ १६ ॥
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