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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पंचविंश अध्ययन [३१२
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पंचविंसइमं अज्झयणं : जन्नइज्जं पंचविंश अध्ययन : यज्ञीय
माहणकुलसंभूओ, आसि विप्पो महायसो ।
जायाई जमजन्नमि, जयघोसे त्ति नामओ ॥१॥ ब्राह्मण कुल में उत्पन्न जयघोष नाम का महायशस्वी विप्र था; जो हिंसक यज्ञ करने वाला यायाजी था ॥१॥
Born in Brāhmana family there was a famous Brāhmana named Jayaghoșa. He was a performer of violent sacrifices. (1)
इन्दियग्गामनिग्गाही, मग्गगामी महामुणी ।
गामाणुगामं रीयन्ते, पत्तो वाणारसिं पुरिं ॥२॥ वह इन्द्रियसमूह का निग्रह करने वाला, मार्गगामी महामुनि बन गया था। एक बार ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ, वाणारसी पहुँच गया ॥२॥
He became a great sage, moving on right path and subduer of senses. Wandering village to village once he approached Vāņārasi. (2)
वाणारसीए बहिया, उज्जाणंमि मणोरमे ।
फासुए सेज्जसंथारे, तत्थ वासमुवागए ॥३॥ वाणारसी के बाह्य भाग में एक मनोरम उद्यान था। वहाँ प्रासुक शैया, संस्तारक, पीठ, फलक, आसन आदि लेकर ठहर गया ॥३॥
In the outer part of city there was a beautiful park. He stayed there taking pure bed, lodge, seat, etc., (3)
अह तेणेव कालेणं, पुरीए तत्थ माहणे ।
विजयघोसे त्ति नामेण, जन्नं जयइ वेयवी ॥४॥ उसी समय वाणारसी पुरी-नगरी में वेदों का ज्ञाता विजयघोष नामक ब्राह्मण यज्ञ कर रहा था ॥४॥
At the same time, well-versed in Vedas a Brāhmaṇa named Vijayaghoșa was performing a sacrifice. (4)
अह से तत्थ अणगारे, मासक्खमणपारणे ।
विजयघोसस्स जनमि, भिक्खस्सऽट्ठा उवट्ठिए ॥५॥ एक मास की तपस्या के पारणे हेतु जयघोष अनगार, भिक्षा के लिए विजयघोष के यज्ञ में उपस्थित हुआ-पहुँचा ॥५॥
Jain
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