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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
Anger, pride, deceit, greed, laughter, fear, talkativeness, ill-stories- (9)
Wise restrained adept should renounce, aforesaid eight and according to opportunity he should speak faultless and within limit. (10) ३ - एषणा समिति
गवेसणाए गहणे य, परिभोगेसणा य जा । • आहारोवहि- सेज्जाए, एए तिन्नि विसोहए ॥११॥ उग्गमुप्पायणं पढमे, बीए सोहेज्ज एसणं । परिभोयंमि चउक्कं, विसोहेज्ज जयं जई ॥१२॥
गवेषणा, ग्रहणैषणा और परिभोगैषणा से आहार, उपधि और शैया - इन तीनों का परिशोधन करे ||११||
यतनाशील यति प्रथम एषणा ( आहारादि की गवेषणा) में उद्गम और उत्पादन दोषों का शोधन करे । दूसरी ग्रहणैषणा में आहार आदि ग्रहण करने से सम्बन्धित दोषों का शोधन करे और तीसरी परिभोगेषणा में संयोजना आदि दोष चतुष्क का शोधन करे ॥१२॥
चतुर्विंश अध्ययन [ ३०६
Care in search, acceptance and use-this three type of seeking-vigilence. He should watch that food, lodge, bed should be fault-free. (11)
Faults due to donor and to receiver, udgama and utpådana are contents of search and these faults he carefully weeds and fourfold fault in the use of offer. (12)
४ - आदान-निक्षेपणा समिति
ओहोवहोवग्गहियं, भण्डगं दुविहं
मुणी । गिण्हन्तो निक्खिवन्तो य, पउंजेज्ज इमं विहिं ॥१३॥ चक्खुसा पडिलेहित्ता, पमज्जेज्ज जयं ई । आइए निक्खिवेज्जा वा, दुहओ वि समिए सबा ॥ १४ ॥
मुनि ओघ उपधि ( सामान्य उपकरण) और औपग्रहिक उपधि (विशेष स्थिति के उपकरण ) - दोनों प्रकार के भाण्डोपकरणों को ग्रहण करने, लेने-उठाने और रखने में इस विधि का प्रयोग करे ॥१३॥
यतनापूर्वक प्रवृत्ति करने वाला यति दोनों तरह के उपकरणों को आँखों से देखकर प्रतिलेखन और प्रमार्जन करके सदा समितियुक्त होकर ग्रहण करे- लेवे तथा रखे ॥१४॥
Monk should use this method in picking and putting his common and special things. (13) Having observed with his eyes, cleaning bowls with proper care, in picking up and putting down, he practises vigilence in both the ways. ( 14 )
५ - परिष्ठापनिका समिति
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पासवणं,
उच्चारं खेलं आहारं उवहिं देहं, अन्नं वावि अणावायमसंलोए, अणावाए चेव आवायमसंलोए,
सिंघाण - जल्लियं ।
तहाविहं ॥१५ ॥ होइ संलोए ।
आवाए चेय संलोए ॥ १६ ॥
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