________________
२९७ ] त्रयोविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
( केशी) गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है । तुमने मेरा यह संशय भी छिन्न कर दिया। मेरा एक संशय और है। उसके बारे में भी मुझे कहो - बताओ ॥ ६९ ॥
(Kesi) Gautama! Your intelligence is best. You have removed my this doubt. Another suspicion is also in my mind, remove that also. (69)
अण्णवंसि महोहंसि, नावा विपरिधावई । जंसि गोयममारूढो, कहं पारं गमिस्ससि ? ॥७०॥
महाप्रवाह वाले सागर में नौका (नाव) विपरीत रूप से इधर-उधर भाग रही है ( विपरिधावई ) । हे गौतम ! तुम उसमें बैठे हो । किस प्रकार पार (सागर के तट तक) जा सकोगे ? ॥ ७० ॥
On the ocean with many huge currents there drifts a boat and you are on board of it, how could 1 you reach the opposite coast ? (70)
जा उ अस्साविणी नावा, न सा पारस्स गामिणी ।
जा निरस्साविणी नावा, सा उ पारस्स गामिणी ॥ ७१ ॥
(गौतम) जो नौका छिद्रयुक्त होती है, वह पार ले जाने वाली नहीं होती अपितु जो नाव छिद्ररहित होती है, वही पार ले जाने वाली होती है ॥७१॥
(Gautama) A boat with holes cannot reach the opposite coast; but the holeless boat safely reaches the opposite shore. (71)
नावा य इइ का वृत्ता ? केसी गोयममब्बवी ।
सिमेवं बुवंतंतु, गोयमो इणमब्बवी ॥ ७२ ॥
( केशी) वह नाव कौन-सी कही गई है ? केशी ने गौतम से पूछा । केशी के पूछने पर गौतम ने इस प्रकार
कहा- ॥७२॥
(Kesi) Kesi asked Gautama - which is that boat ? Gautama answered thus - (72)
सरीरमाहु नाव त्ति, जीवो वुच्चइ नाविओ ।
संसारो अण्णवो वृत्तो, जं तरन्ति महेसिणो ॥ ७३ ॥
(गौतम) शरीर को नौका कहा गया है और जीव को नाविक (मल्लाह ) कहा जाता है तथा संसार को समुद्र कहा गया है; जिसे महर्षि तैरकर पार कर जाते हैं ॥७३॥
(Gautama) Body is boat, soul is sailor, the world is ocean; which is crossed by great sages. (73)
साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ! ॥७४॥
( केशी) गौतम! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संशय मिटा दिया। मेरा और भी एक संशय है। है गौतम ! उसके संबंध में भी मुझे कहो ॥७४॥
(Kesi) Gautama! Your intelligence is best, you have removed my this doubt. Another suspicion is also in my mind, remove that also. ( 74 )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainerbrary.org