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२९३] त्रयोविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र ती
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(गौतम) हे महामुनि ! भवतृष्णा ही भयंकर लता है, उसमें भयानक परिपाक वाले फल लगते हैं। उसे जड़ से उखाड़ कर मैं न्याय-नीति से विचरण करता हूँ ॥४८॥
(Gautama) O great monk ! Eager desire of existence (life) is the name of that tendril, which brings forth the dreadful fruits. Clipping from root that tendril, I wander pleasantly. (48)
साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो ।
_अन्नो वि संसओ मझं, तं मे कहसु गोयमा ! ॥४९॥ (केशी) हे गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरे इस संशय का समाधान कर दिया। मेरा एक और भी संशय है। उसके संबंध में भी मुझे कहें ॥४९॥ ___ (Kesi) Gautama ! Your intelligence is excellent. You have removed my this doubt. I have one suspicion more, remove also that. (49)
संपज्जलिया घोरा, अग्गी चिट्ठइ गोयमा !।
जे डहन्ति सरीरत्था, कहं विज्झाविया तुमे ? ॥५०॥ हे गौतम ! घोर प्रचण्ड अग्नियाँ प्रज्वलित हो रही हैं जो शरीर में स्थित जीवों को जलाती हैं। तुमने उन अग्नियों को कैसे बुझाया ?॥५०॥
Gautama ! There are blazing up frightful fires, which burn the embodied beings. How you have quenched those fires ? (50)
महामेहप्पस्याओ, गिज्झ वारि जलत्तमं ।
सिंचामि सययं देहं, सित्ता नो व डहन्ति मे ॥५१॥ (गौतम) महामेघ से उत्पन्न उत्तम जल लेकर मैं निरन्तर उन आग्नयों को सिंचित करता रहता हूँ। अतः सिंचित की हुई अग्नियाँ मुझे नहीं जलातीं ॥५१॥
(Gautama) Taking excellent water, which is produced by great cloud, I always pour it on those fires, thus sprinkled fires do not burn me. (51)
अग्गी य इइ के वुत्ता ? केसी गोयममब्बवी ।
केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥५२॥ (केशी) वे अग्नियाँ कौन-सी कही गई हैं ? केशी ने गौतम से कहा। केशी के कहने (पूछने) पर गौतम ने इस प्रकार कहा-॥५२॥ (Kesi) What are those fires ? To these words of Kesi, Gautama said thus-(52)
कसाया अग्गिणो वुत्ता, सुय-सील-तवो जलं ।
सुयधाराभिहया सन्ता, भिन्ना हु न डहन्ति मे ॥५३॥ (गौतम) कषायों (क्रोध, मान, माया और लोभ) को अग्नियाँ कहा गया है तथा श्रुत, शील और तप || उत्तम जल है। श्रुत-शील-तप की जल धारा से बुझी हुई तथा नष्ट हुई अग्नियाँ मुझे नहीं जलाती हैं ॥५३॥
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