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तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
त्रयोविंश अध्ययन [२९२
रागद्दोसादओ तिव्वा, नेहपासा भयंकरा ।
ते छिन्दित्तु जहानायं, विहरामि जहक्कम ॥४३॥ (गौतम) तीव्र राग-द्वेष और स्नेह भयंकर पाश बन्धन हैं। उन्हें काटकर न्याय-नीतिपूर्वक मैं विचरण करता हूँ ॥४३॥
(Gautama) Intense attachment-detachment and love are the ferocious bondage-snares. Breaking those snares I wander freely. (43)
साहु गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो ।
अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ! ॥४४॥ (केशी) गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संशय दूर कर दिया। मेरा एक और भी संशय है, उसके विषय में मुझे कहो-बताओ ॥४४॥
(Kesi) Gautama ! Your intelligence is best. You have removed my this doubt. I have also another doubt. Please, remove that also. (44)
अन्तोहियय-संभूया, लया चिट्ठइ गोयमा !।
फलेइ विसभक्खीणि, सा उ उद्धरिया कहं ? ॥४५॥ हे गौतम ! हृदय के भीतर उत्पन्न एक लता रहती है, वह विष के समान फल देती है। उस विषलता को तुमने कैसे उखाड़ा ?॥४५॥
O Gautama! A tendril grows up in the innermost heart, that brings forth poisonous fruits. How you have uprooted that tendril. (45)
तं लयं सव्वसो छित्ता, उद्धरित्ता समूलियं ।
विहरामि जहानायं, मुक्को मि विसभक्खणं ॥४६॥ (गौतम) मैंने उस लता को सर्वथा काटकर एवं मूल सहित उखाड़ कर फेंक दिया है। अतः मैं विषफलों से बचा रहकर यथान्याय विचरण करता हूँ ॥४६॥
(Gautama) I have thrown off that tendril torning it with its roots. So being safe from poisonous fruits, I wander freely. (46)
लया य इइ का वुत्ता ? केसी गोयममब्बवी ।
केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥४७॥ (केशी) केशी ने गौतम से पूछा-वह लता कौन-सी कही गई है ? केशी के यह पूछने पर गौतम ने बताया-॥४७॥
(Kesi) Kesi said to Gautama, what do you call that tendril ? This question of Kesi, Gautama replied thus-(47)
भवतण्हा लया वुत्ता, भीमा भीमफलोदया । तमुद्धरित्तु जहानायं, विहरामि महामुणी ! ॥४८॥
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