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२९१] त्रयोविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
(Kesi) Kesi said to Gautama-whom do you call foes ? Hearing these words of Kesi, Gautama replied-(37)
एगप्पा अजिए सत्तू, कसाया इन्दियाणि य ।
ते जिणित्तु जहानायं, विहरामि अहं मुणी ! ॥३८॥ (गौतम) हे मुने ! अविजित एक अपना आत्मा ही शत्रु है। चार कषाय और पाँच इन्द्रियाँ भी शत्रु हैं। इनको जीतकर मैं यथान्याय-नीति पूर्वक विचरण करता हूँ ॥३८॥
(Gautama) O monk ! Invincible own soul is the greatest foe.Four passions (anger, pride, deceit and greed) and five senses (of touch, taste, smell, sight and hearing) are also foes, winning all these I wander properly. (38)
साह गोयम ! पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो ।
अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ! ॥३९॥ (केशी) हे गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। मेरा यह संशय मिट गया लेकिन मेरा एक संशय और भी है। हे गौतम ! मुझे उसके विषय में कहें-बतावें ॥३९॥
(Kesi) Gautama ! Your intelligence is the best. My this doubt is removed; but I have another suspicion, remove also that. (39)
दीसन्ति बहवे लोए, पासबद्धा सरीरिणो ।
मुक्कपासो लहुब्भूओ, कह तं विहरसी मुणी ॥४०॥ इस लोक में बहुत से शरीरधारी जीव पाश से आबद्ध दिखाई देते हैं। हे मुने ! तुम किस प्रकार पाशबन्धन से मुक्त और लघुभूत-हलके होकर प्रतिबन्ध रहित विचरण करते हो ? ॥४०॥
Many corporeal beings are seen ensnared in this world. How you are free from snare and wander being light. (40)
ते पासे सबसो छित्ता, निहन्तूण उवायओ ।
मुक्कपासो लहुब्भूओ, विहरामि अहं मुणी ! ॥४१॥ (गौतम) हे मुनिवर ! विशिष्ट उपाय से उन सब पाश बन्धनों को सर्व प्रकार से काटकर तथा नष्टकर मैं पाशमुक्त और लघुभूत होकर विचरण करता हूँ ॥४१॥
(Gautama) O monk ! Breaking all those snare bondages by special measures, I wander freely. (41)
पासा य इइ के वुत्ता ?, केसी गोयममब्बवी ।
केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥४२॥ (केशी) केशी ने गौतम से पूछा-हे गौतम ! वे बन्धन कौन से हैं ? केशी के पूछने पर गौतम ने इस प्रकार कहा-॥४२॥
(Kesi) Kesi asked Gautama-What are those snares ? Asking thus by Kesi, Gautama replied in these words-(47)
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